नई दिल्ली, 24 सितंबर 2025।
भारतीय रुपया बुधवार को अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से मामूली सुधार करता हुआ 88.71 रुपये प्रति डॉलर (अनंतिम) पर बंद हुआ। मंगलवार को रुपया 45 पैसे टूटकर अब तक के सबसे निचले स्तर 88.73 पर बंद हुआ था। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि और अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए नए टैरिफ (शुल्क) दबाव के चलते रुपया अभी भी कमज़ोरी के आसपास बना हुआ है।
रुपये की चाल
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में बुधवार को रुपया 88.80 पर खुला और दिनभर के उतार-चढ़ाव के बाद 88.71 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव की तुलना में 2 पैसे की बढ़त है। कारोबारी सत्र के दौरान रुपया अपने ऐतिहासिक निचले स्तर 88.82 के आसपास भी गया।
ट्रेडर्स का कहना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशों (FII) की बिकवाली, निवेशकों की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति और व्यापार नीतियों की अनिश्चितता रुपये पर दबाव बना रही है।
वैश्विक परिदृश्य और दबाव
- डॉलर इंडेक्स बुधवार को 0.36% बढ़कर 97.61 पर पहुंच गया, जिससे अमेरिकी मुद्रा का दबदबा और मजबूत हुआ।
- ब्रेंट क्रूड ऑयल 0.61% की बढ़त के साथ 68.04 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था।
- घरेलू शेयर बाजार में सेंसेक्स 386.47 अंकों की गिरावट के साथ 81,715.63 पर और निफ्टी 112.60 अंकों की गिरावट के साथ 25,056.90 पर बंद हुए।
- विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मंगलवार को भारतीय शेयर बाजार से 3,551.19 करोड़ रुपये की निकासी की।
विशेषज्ञों की राय
मीराए एसेट शेयरखान के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा,
“हम उम्मीद करते हैं कि रुपये पर अमेरिकी वीज़ा शुल्क वृद्धि का दबाव बना रहेगा। हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में कमजोरी और RBI का संभावित हस्तक्षेप निचले स्तर पर रुपये को सहारा दे सकता है। स्पॉट मार्केट में डॉलर-रुपया 88.40 से 89.25 की रेंज में रहने की संभावना है।”
सरकार-स्तरीय कोशिशें
इस बीच भारत के व्यापार एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका में अपने समकक्ष के साथ बातचीत कर रहे हैं। उनके साथ भारत के मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद हैं।
यह वार्ता नई दिल्ली में हाल ही में हुई अमेरिका और भारत के प्रतिनिधियों के बीच हुई दिवसीय बैठक के बाद की अगली कड़ी है, जो प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर चल रही है।
मानवीय असर की झलक
विदेशी शुल्क वृद्धि और वीज़ा नीतियों में बदलाव सीधे उन भारतीय उद्यमों, आईटी पेशेवरों और छोटे निर्यातकों को प्रभावित कर रहा है, जो अमेरिका को सबसे बड़े बाज़ार के रूप में देखते हैं। बढ़ती विनिमय दर से आयात महंगा होता है, जिससे आम उपभोक्ता पर भी असर पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि व्यापार वार्ताओं से राहत मिलती है तो रुपया मध्यम अवधि में धीरे-धीरे संभल सकता है।
