भिलाई। शिक्षा जगत में प्रतिष्ठित माने जाने वाले तकनीकी विश्वविद्यालय (CSVTU) भिलाई पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बीआईटी दुर्ग में पदस्थ रहे प्रोफेसर एम.के. कोवर की पीएचडी डिग्री फर्जी पाई गई थी, जिसकी पुष्टि स्वयं कलकत्ता विश्वविद्यालय ने की। इस खुलासे के बावजूद कार्रवाई के बजाय अधिकारियों ने मामले को दबाने का काम किया।
मामला वर्ष 2014 से चर्चा में आया जब तकनीकी विश्वविद्यालय को शिकायत प्राप्त हुई। जांच में साफ हुआ कि एम.के. कोवर की पीएचडी डिग्री अवैध है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने उन्हें न केवल प्रोफेसर और पीएचडी गाइड घोषित किया बल्कि उनके अधीन दर्जनों शोधार्थियों को पीएचडी पूरी करने की अनुमति भी दी। बाद में जब फर्जीवाड़ा साबित हुआ तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक नया नोटिफिकेशन जारी कर इन शोधार्थियों को “सेल्फ गाइड” बताकर बचाने का प्रयास किया, जो भारतीय शिक्षा जगत में एक अद्भुत और चौंकाने वाली मिसाल है।
विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद ने 2018 में नेवई थाने में अपराध दर्ज करने की अनुशंसा की थी। परंतु आरोप है कि प्रोफेसर कोवर धनवान और प्रभावशाली होने के चलते मामला दबा दिया गया। जो अधिकारी निष्पक्ष जांच करना चाहते थे, उन्हें साजिशन सेवा से बाहर कर दिया गया। बताया जा रहा है कि इस पूरे मामले में कुलपति और कुलसचिव की भूमिका बेहद संदिग्ध रही।
जनचर्चा यह भी है कि यदि छत्तीसगढ़ में शिक्षकों की डिग्रियों की गहन जांच की जाए तो सैकड़ों ऐसे मामले सामने आ सकते हैं, जहां फर्जी डिग्रियों के बल पर उच्च पदों पर बैठे लोग शिक्षा व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं। समाज में यह प्रश्न भी उठ रहा है कि क्या केवल धनबल और प्रभाव के कारण अपराध को दबा दिया जाएगा? तुलसीदास की पंक्ति “समरथ को नहीं दोष गोसाईं” इस प्रकरण पर सटीक बैठती प्रतीत होती है।
