वॉशिंगटन/न्यूयॉर्क। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने विदेशी प्रोफेशनल्स के लिए इस्तेमाल होने वाले H-1B वीज़ा की सालाना फीस को अचानक बढ़ाकर 100,000 डॉलर कर दिया है। इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीय टेक प्रोफेशनल्स और कंपनियों पर पड़ने वाला है।

ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देने को प्राथमिकता देगा, जबकि असाधारण प्रतिभा रखने वाले लोगों के लिए विशेष रास्ते भी खुले रहेंगे। इसी बीच, टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क के पुराने बयानों ने सोशल मीडिया पर एक बार फिर हलचल मचा दी है।
दक्षिण अफ्रीका में जन्मे मस्क खुद अमेरिका में वीज़ा सिस्टम की वजह से बस पाए। उन्होंने पहले H-1B वीज़ा प्रोग्राम की जोरदार वकालत की थी और यहां तक कह दिया था कि अगर इसे खत्म करने की कोशिश हुई तो वे “जंग छेड़ देंगे”। मस्क ने कहा था, “स्पेसएक्स और टेस्ला जैसी कंपनियों को बनाने वाले कई अहम लोग H-1B की वजह से ही अमेरिका में हैं।”

हालांकि, कुछ ही घंटों बाद उनका रुख बदल गया। उन्होंने ट्वीट करके लिखा कि H-1B वीज़ा सिस्टम “टूटा हुआ है और इसमें बड़े सुधार की ज़रूरत है”। उन्होंने सुझाव दिया था कि वीज़ा पर न्यूनतम वेतन बढ़ाया जाए और इसे बनाए रखने के लिए कंपनियों से सालाना शुल्क लिया जाए, ताकि घरेलू कर्मचारियों की भर्ती को बढ़ावा मिल सके।
अब ट्रम्प प्रशासन ने “ट्रंप गोल्ड कार्ड” और “ट्रंप प्लेटिनम कार्ड” जैसी नई योजनाओं का ऐलान भी किया है, जो निवेशकों, वैज्ञानिकों, कलाकारों और एथलीट्स के लिए होंगे। ये योजनाएं मौजूदा रोजगार आधारित वीज़ा की जगह लेंगी, जिनसे अमेरिकी नागरिकता की राह भी खुलती थी।
ट्रम्प के इस फैसले ने जहां टेक इंडस्ट्री और भारतीय पेशेवरों की चिंता बढ़ा दी है, वहीं मस्क का यू-टर्न एक नई बहस को जन्म दे रहा है—क्या यह बदलाव अमेरिकी टेक सेक्टर को कमजोर करेगा या वाकई स्थानीय युवाओं के लिए नए अवसर लाएगा?

