नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कुछ अभ्यर्थियों को छत्तीसगढ़ न्यायिक सेवा (Chhattisgarh Judicial Service) की प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी है। यह परीक्षा 21 सितंबर को आयोजित की जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) को निर्देश दिया कि वे ऐसे उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से परीक्षा में शामिल होने दें, जिनके पास सभी योग्यताएं हैं, लेकिन बार काउंसिल में नामांकन संबंधी शर्त के चलते उनके प्रवेश पत्र जारी नहीं हुए।
क्या है मामला?
परीक्षा अधिसूचना में यह शर्त रखी गई थी कि अभ्यर्थी विज्ञापन की तारीख (23 दिसंबर 2024) को राज्य बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकित होना चाहिए। लेकिन जो अभ्यर्थी सरकारी अधिवक्ता, पब्लिक प्रॉसिक्यूटर या सरकारी सेवा में नियुक्त विधि अधिकारी हैं, उन्हें नियुक्ति मिलते ही बार काउंसिल में अपना नामांकन स्थगित करना पड़ता है। यही कारण था कि CGPSC ने उनके प्रवेश पत्र जारी नहीं किए।
इन अभ्यर्थियों की याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 16 सितंबर को खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने दिया जाए, लेकिन यह स्पष्ट किया कि यह अनुमति किसी भी प्रकार का अंतिम अधिकार नहीं देती। यदि भविष्य में पात्रता पर सवाल उठता है तो आयोग और राज्य सरकार स्वतंत्र होंगे।
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आयोग तीन साल की प्रैक्टिस की शर्त को लागू न करे, क्योंकि यह अधिसूचना 20 मई 2025 को आए फैसले से पहले की है। उस फैसले में कोर्ट ने एंट्री लेवल न्यायिक सेवा में केवल तीन साल का अनुभव रखने वाले अधिवक्ताओं को पात्र ठहराया था।
उम्मीदवारों की उम्मीदें
इस आदेश ने उन दर्जनों उम्मीदवारों को राहत दी है, जो योग्य होने के बावजूद केवल तकनीकी कारणों से परीक्षा से बाहर हो रहे थे। अब वे भी अपने सपनों की न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठ सकेंगे।
