भिलाई। “माले मुफ्त दिले बेरहम” की कहावत छत्तीसगढ़ के एकमात्र तकनीकी विश्वविद्यालय भिलाई पर सटीक बैठ रही है। छात्रों और कॉलेजों से ली जाने वाली फीस से चलने वाले इस विश्वविद्यालय में लोकधन को विगत कई वर्षों से जिस बेरहमी से बर्बाद किया जा रहा है, वह अब उजागर हो रहा है।
साल 2005 से 2015 तक कुलपति और कुलसचिव विश्वविद्यालय परिसर के नजदीक ही रहते थे, जिससे वाहनों पर डीज़ल खर्च कम होता था। लेकिन बाद में अधिकारियों ने रायपुर में निवास बनाकर आना-जाना शुरू किया और पेट्रोल–डीज़ल खर्च लाखों तक पहुंचा दिया।
विश्वविद्यालय सूत्रों के मुताबिक, वर्तमान प्रभारी कुलसचिव को बिना शासन आदेश के ही पदभार दिला दिया गया है। उनके निवास की दूरी मुश्किल से 15 किमी है, फिर भी हर महीने 250 लीटर डीज़ल–पेट्रोल का खर्च दिखाया जा रहा है, जबकि वास्तविक खपत 100 लीटर से ज्यादा नहीं हो सकती।
वाहन क्रमांक CG02AU554, CG02AU556, CG02AU1207, CG02AU1208 और चार बोलेरो पर सबसे ज्यादा दुरुपयोग का आरोप है। इतना ही नहीं, रजिस्ट्रार बोर्ड हटाकर इन वाहनों का उपयोग निजी और ससुराल के कार्यों में होने की बात सामने आई है। विश्वविद्यालय में कुछ शिक्षकों और कंसल्टेंट्स को भी नियमविरुद्ध वाहन सुविधा दी गई है।
आडिट में इस अनियमितता पर आपत्ति दर्ज की गई है और आशंका जताई जा रही है कि यदि ईमानदारी से लाग बुक और ड्राइवरों से पूछताछ हो तो डीज़ल–पेट्रोल घोटाले का बड़ा भंडाफोड़ हो सकता है।
उधर, छात्र–छात्राओं का कहना है कि जिस फीस से उनकी सुविधाएं बढ़नी चाहिए थीं, वही धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। परिसर में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और जिम्मेदार अधिकारी अपनी ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं।
नव नियुक्त कुलपति डॉ. अरुण अरोरा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस गहराते भ्रष्टाचार को रोकना और छात्रों का विश्वास बहाल करना है। अब देखना होगा कि वे बेपटरी प्रशासन को कब तक पटरी पर ला पाते हैं।
