छत्तीसगढ़ में आंदोलन की आंधी: सरकार की नीतिगत नाकामी से नेपाल जैसी अस्थिरता का खतरा?

रायपुर। छत्तीसगढ़ इन दिनों आंदोलनों की आग में तप रहा है। स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा और पर्यावरण तक, हर मोर्चे पर जनता और कर्मचारी सड़क पर हैं। सवाल साफ है—क्या यह केवल असंतोष की लहर है या फिर नेपाल जैसी राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता का संकेत?

स्वास्थ्य संकट और सरकार की चुप्पी:
गारीबंद जिले के छोटे से गांव रसेला में फार्मासिस्ट राहुल चक्रधारी की मजबूरी पूरी तस्वीर बयान करती है। डॉक्टरों की अनुपस्थिति में उन्हें न केवल दवाइयाँ बाँटनी पड़ रही हैं, बल्कि दवाइयाँ लिखनी भी पड़ रही हैं। यह स्थिति क्यों बनी? क्योंकि 14,000 से ज्यादा NHM कर्मी पिछले 24 दिनों से हड़ताल पर हैं। स्थायीकरण, बेहतर वेतन और कामकाजी हालात की मांग को लेकर निकली यह हड़ताल, राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल रही है। सरकार की खामोशी और समाधान की कमी इस संकट को और गहरा कर रही है।

शिक्षा के मोर्चे पर असंतोष:
युवाओं का गुस्सा सड़कों पर छलक रहा है। BPSC TRE 4 शिक्षक भर्ती परीक्षा को लेकर छात्र सरकार को वादा खिलाफी का आरोपी ठहरा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़प बताती है कि धैर्य की सीमा टूट चुकी है। रोजगार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर यदि सरकार ने ठोस कदम नहीं उठाए तो यह असंतोष राजनीतिक जमीन खिसका सकता है।

पर्यावरण पर जनता का संघर्ष:
हसदेव अरण्य की कटाई केवल पेड़ों का मुद्दा नहीं है। यह उस आजीविका और पर्यावरण की लड़ाई है, जो आदिवासी और स्थानीय समुदाय की पहचान है। हजारों लोग कटाई रुकवाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। लेकिन सरकार का झुकाव उद्योग और खनन परियोजनाओं की तरफ अधिक दिखाई देता है। यह जनभावनाओं के साथ सीधा टकराव है।

नेपाल जैसी स्थिति क्यों?
नेपाल में अस्थिरता वहाँ की जनता के लगातार आंदोलनों और सरकारों की असफलताओं से पैदा हुई थी। आज छत्तीसगढ़ में भी कुछ वैसा ही परिदृश्य बनता दिखाई दे रहा है—

  • कर्मचारी नाखुश हैं,
  • युवा नाराज हैं,
  • पर्यावरण कार्यकर्ता विरोध में हैं,
  • और जनता का भरोसा डगमगा रहा है।

यदि यह असंतोष इसी तरह बढ़ता रहा और सरकार समाधान में नाकाम रही, तो छत्तीसगढ़ में राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

संपादकीय राय:
सरकार को अब “इंतजार करो और देखो” की नीति छोड़नी होगी। यह समय है निर्णायक संवाद और ठोस कार्रवाई का। क्योंकि यदि जनता का भरोसा एक बार पूरी तरह टूट गया, तो नतीजे सिर्फ चुनावी हार तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि राज्य को नेपाल जैसे लंबे अस्थिर दौर में भी धकेल सकते हैं।

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