रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को निरस्त कर दिया है, जिसके तहत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर की सीधी भर्ती का रास्ता खोला गया था।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविन्द्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अधिसूचना नियमों के खिलाफ और अवैध है।
यह मामला कई एसोसिएट प्रोफेसरों द्वारा दाखिल याचिकाओं से जुड़ा था। उन्होंने दलील दी कि 10 दिसंबर 2021 को जारी की गई अधिसूचना उनके पदोन्नति के अधिकार का हनन करती है। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि छत्तीसगढ़ मेडिकल एजुकेशन (गजटेड) सर्विस भर्ती नियम 2013 के अनुसार प्रोफेसर का पद 100 प्रतिशत पदोन्नति से ही भरा जाना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज परांजपे ने अदालत में यह भी तर्क दिया कि सरकार केवल अधिसूचना के जरिए भर्ती के मूल नियमों में बदलाव नहीं कर सकती। नियम 22 में दी गई “रियायत की शक्ति” सिर्फ सेवा शर्तों तक सीमित है, न कि भर्ती की प्रक्रिया बदलने के लिए।
वहीं, सरकार की ओर से अधिवक्ता संघरश पांडे ने कहा कि नए मेडिकल कॉलेजों के खुलने और पदों की संख्या बढ़ने से प्रोफेसरों की भारी कमी हो गई है। इस कमी को दूर करने और मेडिकल काउंसिल की मान्यता बनाए रखने के लिए सीधी भर्ती जरूरी थी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जब नियम 2013 में यह प्रावधान है कि प्रोफेसर के पद पदोन्नति से भरे जाएंगे, तो सरकार इसे अधिसूचना के जरिए बदल नहीं सकती। अदालत ने कहा कि “पदोन्नति पर विचार किया जाना कर्मचारियों का मौलिक अधिकार है, जिसे अनुच्छेद 16 के तहत संरक्षित किया गया है।”
अंत में अदालत ने अधिसूचना को असंवैधानिक और नियमों के विपरीत घोषित करते हुए इसे रद्द कर दिया और सरकार को निर्देश दिया कि प्रोफेसरों की नियुक्ति 2013 के नियमों के अनुसार योग्य एसोसिएट प्रोफेसरों को पदोन्नति देकर ही की जाए।
