छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शोर प्रदूषण पर जताई कड़ी चिंता, सरकार से मांगा जवाब

रायपुर, 11 सितंबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य में बढ़ते शोर प्रदूषण और इससे जुड़े कानून में संशोधन में हो रही देरी पर कड़ी चिंता जताई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने 9 सितंबर को स्वतः संज्ञान (सुओ मोटो) जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा।

मामला हाल ही में त्योहारों के दौरान बढ़े ध्वनि प्रदूषण की घटनाओं से जुड़ा है। राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि छत्तीसगढ़ कोलाहल अधिनियम, 1985 में संशोधन का प्रस्ताव 13 अगस्त को पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा आवास एवं पर्यावरण विभाग को भेजा गया था। इसके लिए अगले दिन ही एक समिति बनाई गई है।

हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे इस प्रस्ताव पर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें। अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।

इस बीच रायपुर के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता ने एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल की, जिसमें ध्वनि प्रदूषण से स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर असर को रेखांकित किया गया। डॉ. गुप्ता ने अंबिकापुर की हालिया घटना का उल्लेख किया, जहां 15 वर्षीय एक किशोर डीजे की तेज़ धुन पर नाचते हुए बेहोश होकर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई। आशंका है कि यह मौत तेज़ आवाज़ से हुए कार्डियक अरेस्ट की वजह से हुई।

डॉ. गुप्ता ने एआईआईएमएस की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि 70–85 डेसिबल से ऊपर के शोर के लगातार संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है और हाइपरटेंशन, हृदय रोग, नींद में बाधा और मानसिक रोग जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों पर इसका प्रभाव और भी गहरा होता है।

एनआईटी रायपुर की एक विस्तृत स्टडी (अगस्त–सितंबर 2022) में पाया गया कि रायपुर शहर के 18 प्रमुख चौराहों पर शोर का स्तर सीपीसीबी मानकों से लगातार अधिक है। 400 लोगों पर किए गए सर्वे में “कान में दर्द”, “घंटी बजने जैसी आवाज़”, “रक्तचाप बढ़ना”, “नींद न आना”, “सिरदर्द” और “कामकाज की क्षमता कम होना” जैसी शिकायतें सामने आईं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर WHO के दिशानिर्देश बताते हैं कि रात में 30–40 डेसिबल से अधिक शोर नींद की गुणवत्ता बिगाड़ देता है और 70 डेसिबल से ऊपर लंबे समय तक संपर्क से सुनने की क्षमता स्थायी रूप से नष्ट हो सकती है। अदालत ने नोट किया कि हाल के त्योहारों में शोर का स्तर 95 से 110 डेसिबल तक पहुंचा, जो मानक 50 डेसिबल से कहीं अधिक है।

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से उम्मीद जताई कि वह इस गंभीर मुद्दे को संवेदनशीलता से लेगी और प्रस्तावित संशोधन को शीघ्र लागू करेगी।

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