सी.पी. राधाकृष्णन निर्वाचित हुए भारत के 15वें उपराष्ट्रपति, तमिलनाडु से तीसरे नेता को मिली जिम्मेदारी

नई दिल्ली, 10 सितंबर 2025। भारतीय राजनीति के इतिहास में मंगलवार का दिन अहम रहा, जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार और महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन भारत के 15वें उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के प्रत्याशी और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को हराकर जीत दर्ज की।

चुनाव परिणाम में राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, जबकि रेड्डी को 300 वोट ही हासिल हुए। इस जीत ने भाजपा की उम्मीदों को भी पीछे छोड़ दिया, क्योंकि पार्टी को लगभग 440 वोट मिलने की संभावना थी, लेकिन अंतिम आंकड़ा उससे अधिक रहा।

क्रॉस वोटिंग की गूंज
राज्यसभा के महासचिव और चुनाव अधिकारी पी.सी. मोदी ने बताया कि कुल 781 सांसदों में से 767 ने मतदान किया। इनमें 752 वोट वैध और 15 अवैध घोषित किए गए। बहुमत का आंकड़ा 377 था।
राधाकृष्णन की जीत में सबसे अहम पहलू रहा क्रॉस वोटिंग, क्योंकि विपक्ष ने दावा किया था कि उनके सभी 315 सांसद एकजुट होकर मतदान करेंगे। बावजूद इसके, विपक्षी प्रत्याशी को केवल 300 वोट ही मिले। भाजपा नेताओं ने इसे विपक्षी खेमे में फूट और राधाकृष्णन के लिए व्यापक स्वीकार्यता का प्रमाण बताया।

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा— “कई विपक्षी सांसदों ने भी एनडीए उम्मीदवार को वोट दिया। यह साबित करता है कि सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर मतदान किया।”

तमिलनाडु से जुड़ाव और राजनीतिक संदेश
तमिलनाडु के कोयंबटूर से दो बार सांसद रह चुके 67 वर्षीय राधाकृष्णन बचपन से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं। उनका चयन केवल उपराष्ट्रपति पद तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे भाजपा का ‘प्रोजेक्ट तमिलनाडु’ भी माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2026 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने राज्य में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है। राधाकृष्णन गोंडर (OBC) समुदाय से आते हैं, जिसे एआईएडीएमके का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। यह वही समुदाय है जिससे एआईएडीएमके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी भी आते हैं।

ओबीसी राजनीति की मजबूती
राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति चुना जाना न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी ओबीसी सशक्तिकरण का संकेत है। वर्तमान में देश के तीन सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर एक आदिवासी महिला (राष्ट्रपति), एक ओबीसी प्रधानमंत्री और अब एक ओबीसी उपराष्ट्रपति हैं। यह भाजपा की रणनीति और सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश को स्पष्ट करता है।

नरम और संवादप्रिय छवि
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की आक्रामक कार्यशैली के उलट राधाकृष्णन को एक मृदुभाषी और संवादप्रिय नेता माना जाता है। विशेषज्ञ इसे भाजपा की “कोर्स करेक्शन” रणनीति बता रहे हैं, जिसमें एक संतुलित और सहयोगी चेहरा राज्यसभा के अध्यक्ष पद पर बैठाया गया है।

नतीजा विपक्ष के लिए झटका
विपक्ष का दावा था कि उसने इस चुनाव में मजबूत एकजुटता दिखाई है, लेकिन परिणामों ने यह संदेश दिया कि विपक्ष की रणनीति में खामियां रह गईं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हालांकि इसे “सम्मानजनक प्रदर्शन” बताया और कहा कि विपक्षी उम्मीदवार को 40% वोट मिले।

निष्कर्ष
सी.पी. राधाकृष्णन की यह जीत न केवल भाजपा और एनडीए के लिए राजनीतिक मजबूती का प्रतीक है, बल्कि दक्षिण भारत में पार्टी की रणनीतिक तैयारी का भी हिस्सा है। उनका चुनाव भविष्य की राजनीति और विशेषकर तमिलनाडु के चुनावों के लिए एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।

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