नई दिल्ली, 05 सितम्बर 2025।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत आगे भी रूस से तेल खरीदेगा और इस फैसले में केवल राष्ट्रीय हित को ही प्राथमिकता दी जाएगी।
उन्होंने कहा—
“चाहे रूसी तेल हो या कोई और, हम वही निर्णय लेंगे जो हमारी ज़रूरतों, दरों और लॉजिस्टिक के लिहाज़ से हमें सही लगे। यह एक बड़ा विदेशी मुद्रा से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए हम वही करेंगे जो हमारे लिए सबसे उपयुक्त होगा। भारत निस्संदेह रूसी तेल खरीदता रहेगा।”
उन्होंने दोहराया कि भारत के आयात बिल में कच्चे तेल का सबसे बड़ा योगदान है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले जहाँ भारत का रूस से तेल आयात 1% से भी कम था, वहीं अब यह लगभग 40% तक पहुँच चुका है। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है जो समुद्री मार्ग से रूस का कच्चा तेल मंगा रहा है। दूसरी ओर, यूरोप जिसने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाया, वही अब भारत की रिफाइनरियों से बने उत्पाद खरीद रहा है।
सीतारमण ने साथ ही यह भी भरोसा दिलाया कि अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% शुल्क से प्रभावित उद्योगों के लिए सरकार मदद का पैकेज लाएगी। “ऐसे उद्योगों को सहारा देने के लिए हमारे पास कई उपाय तैयार हैं। निश्चित तौर पर उनके लिए राहत दी जाएगी,” उन्होंने कहा।
केंद्रीय तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी भारत के रूसी तेल खरीदने के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया है और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत की भूमिका ने वैश्विक तेल बाज़ार को स्थिर बनाए रखने में मदद की है।
पुरी ने 2 सितम्बर को कहा था—
“रूसी तेल, ईरान या वेनेज़ुएला के तेल जैसा प्रतिबंधित नहीं है। यह जी-7 और यूरोपीय संघ की प्राइस-कैप प्रणाली के अंतर्गत आता है। भारत की हर खरीदारी कानूनी शिपिंग, बीमा और पारदर्शी माध्यमों से की गई है। हमने कोई नियम नहीं तोड़ा। बल्कि हमारी खरीद ने बाज़ार को स्थिर किया और कीमतें अनियंत्रित रूप से बढ़ने से रोका।”
हालाँकि, वॉशिंगटन से लगातार आलोचना हो रही है। व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस की “युद्ध मशीन” को धन उपलब्ध करा रहा है और यहाँ तक कहा कि यह संघर्ष अब “मोदी का युद्ध” बन चुका है।
लेकिन भारत की दलील साफ है— सस्ती दरों पर ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना देश की ज़रूरत है और इसमें किसी बाहरी दबाव के लिए जगह नहीं।
