नई दिल्ली, 5 सितम्बर 2025।
आज पूरे देश में शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह दिन न केवल विद्यार्थियों और समाज को दिशा देने वाले शिक्षकों को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को भी याद करता है।
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में हुआ था। वे एक महान दार्शनिक, विद्वान, शिक्षक और राजनेता थे। उन्होंने शिक्षा और शिक्षकों की भूमिका को समाज की आत्मा माना। जब उनके शिष्यों ने उनके जन्मदिन को विशेष रूप से मनाने की इच्छा जताई, तो उन्होंने बड़े विनम्र भाव से सुझाव दिया कि इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। 1962 से यह परंपरा लगातार जारी है।
एक आदर्श शिक्षक से राष्ट्रपति तक की यात्रा
डॉ. राधाकृष्णन ने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। उनकी शिक्षण यात्रा मैसूर विश्वविद्यालय से शुरू हुई और आगे चलकर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। वे आंध्र विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
शिक्षा और दर्शन के क्षेत्र में उनकी ख्याति विश्वभर में फैल गई। वे पहले भारतीय थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में स्पॉल्डिंग प्रोफेसर ऑफ ईस्टर्न रिलिजन एंड एथिक्स (1936-1952) नियुक्त किया गया। उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय में भी व्याख्यान दिए।
1948 में उन्हें यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया। 1952 में वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1962 में राष्ट्रपति का पद संभाला। उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
डॉ. राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया – 16 बार साहित्य के लिए और 11 बार शांति के लिए। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में Indian Philosophy, The Philosophy of the Upanishads और An Idealist View of Life शामिल हैं।
आज के दिन जब देशभर में बच्चे अपने शिक्षकों का सम्मान कर रहे हैं, तब डॉ. राधाकृष्णन की विरासत और उनका यह संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है कि “शिक्षक ही वह मार्गदर्शक है, जो ज्ञान के दीप से अंधकार मिटाता है।”
