नई दिल्ली, 2 सितम्बर 2025।
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज अपना आधिकारिक आवास खाली कर दिया और अस्थायी तौर पर दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके स्थित एक निजी फार्महाउस में रहने चले गए। यह फार्महाउस इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) नेता अभय चौटाला का है।
धनखड़ का यह ठिकाना केवल कुछ महीनों के लिए अस्थायी व्यवस्था है। नियमों के अनुसार पूर्व उपराष्ट्रपतियों को लुटियंस ज़ोन में टाइप-8 बंगला आवंटित किया जाता है। उन्हें 34 एपीजे अब्दुल कलाम रोड स्थित बंगला अलॉट किया गया है, लेकिन सीपीडब्ल्यूडी (CPWD) के अधिकारियों के मुताबिक उसकी मरम्मत और सजावट का काम पूरा होने में लगभग तीन महीने लगेंगे।
अचानक इस्तीफा और नया चुनाव
74 वर्षीय धनखड़ ने बीते 21 जुलाई को मानसून सत्र के पहले दिन स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर अचानक इस्तीफा दे दिया था। उनका कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन उन्होंने बीच में ही पद छोड़ सबको चौंका दिया। अब 9 सितम्बर को नए उपराष्ट्रपति के चुनाव होंगे। इसमें एनडीए प्रत्याशी सी.पी. राधाकृष्णन, जो वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, का मुकाबला विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी (पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज) से होगा।
तीन पेंशन के हकदार
धनखड़ ने हाल ही में राजस्थान के पूर्व विधायक के रूप में पेंशन के लिए आवेदन किया है। वे 1993 से 1998 तक किशनगढ़ विधानसभा से कांग्रेस विधायक रहे। इसके अलावा, वे झुंझुनूं से लोकसभा सांसद भी रहे और उपराष्ट्रपति के रूप में भी उन्हें पेंशन का अधिकार है।
अधिकारियों के अनुसार, धनखड़ तीन पेंशन पाने के हकदार हैं —
- पूर्व उपराष्ट्रपति के रूप में
- पूर्व सांसद के रूप में
- राजस्थान विधानसभा के पूर्व सदस्य के रूप में
राजस्थान में पूर्व विधायक की पेंशन 35,000 रुपये मासिक से शुरू होती है, और उम्र के साथ इसमें बढ़ोतरी होती है। 70 वर्ष से ऊपर वालों को 20% अतिरिक्त मिलता है। इस तरह 74 वर्षीय धनखड़ को लगभग 42,000 रुपये प्रतिमाह विधायक पेंशन मिलेगी।
हालाँकि पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल होने के नाते उन्हें पेंशन नहीं मिलेगी, लेकिन 25,000 रुपये प्रतिमाह तक एक सचिवीय स्टाफ रखने की सुविधा मिल सकती है।
मानवीय पहलू
धनखड़ ने बतौर उपराष्ट्रपति देश की सेवा की, लेकिन आज वे भी एक साधारण नागरिक की तरह अपने घर के इंतज़ार में अस्थायी ठिकाने पर रह रहे हैं। यह दृश्य सत्ता के गलियारों से निकलने के बाद की वास्तविकता को दर्शाता है कि संवैधानिक पदों की भव्यता छोड़ने के बाद जीवन की प्राथमिकताएँ भी साधारण हो जाती हैं।
