दिल्ली, 1 सितम्बर 2025।
छत्तीसगढ़ के बस्तर से दिल्ली पहुँचे नक्सल पीड़ितों ने अपनी पीड़ा सांसदों के सामने रखी। उन्होंने उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी को समर्थन न देने की अपील की है। उनका कहना है कि जब रेड्डी सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस थे, तभी उनके फैसले से सलवा जुडूम आंदोलन पर प्रतिबंध लगा था। इस फैसले ने बस्तर में नक्सलवाद को और गहरा कर दिया और हजारों परिवार आज तक उसकी त्रासदी झेल रहे हैं।
सलवा जुडूम का दर्द आज भी जिंदा
नक्सल पीड़ित सियाराम रामटेके, जो हमले में दिव्यांग हो चुके हैं, ने भावुक होकर कहा, “अगर सलवा जुडूम पर रोक नहीं लगती तो शायद आज हम सामान्य जीवन जी रहे होते।”
इसी तरह केदारनाथ कश्यप ने बताया कि आंदोलन खत्म होने के बाद नक्सलियों ने उनके भाई की हत्या कर दी।

शहीद परिवारों की करुण कहानी
शहीद मोहन उइके की पत्नी ने आँसुओं के साथ अपनी पीड़ा साझा की। उन्होंने कहा कि जब नक्सली हमले में उनके पति शहीद हुए, तब उनकी बच्ची केवल तीन महीने की थी।
वहीं, चितंगावरम बस हमले के पीड़ित महादेव दूधु ने याद करते हुए कहा कि उस घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया और 32 लोग मौके पर ही मारे गए।
सांसदों को पत्र लिखी अपील
बस्तर शांति समिति के जयराम और मंगऊ राम कावड़े ने बताया कि पीड़ितों ने सभी सांसदों को पत्र भेजकर अपील की है कि वे बी. सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी का समर्थन न करें। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला आज भी बस्तर के हजारों परिवारों की पीड़ा का कारण बना हुआ है।
