रायपुर, 31 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में अजीत प्रमोद कुमार जोगी का नाम हमेशा बड़े अदब से लिया जाता है। वे सिर्फ एक राजनेता नहीं बल्कि प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों ही क्षेत्रों में धुरंधर व्यक्तित्व थे। लेक्चरर, आईपीएस, आईएएस, राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और फिर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री—यह सफर किसी कहानी से कम नहीं है।
बचपन और शिक्षा से लेकर प्रशासन तक
अजीत जोगी का जन्म 29 अप्रैल 1946 को बिलासपुर जिले के पेंड्रा में हुआ। बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाले जोगी ने भोपाल के मौलाना आज़ाद कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और 1968 में गोल्ड मेडल हासिल किया। इसके बाद उन्होंने रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में पढ़ाया। फिर आईपीएस और उसके बाद आईएएस बने।
अर्जुन सिंह और राजनीति की राह
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेहद भरोसेमंद अफसर रहे जोगी को राजनीति में लाने का श्रेय भी अर्जुन सिंह और राजीव गांधी को जाता है। कलेक्टर रहते हुए जोगी अक्सर राजीव गांधी से मिलने एयरपोर्ट जाया करते थे। यहीं से उनके राजनीतिक करियर की नींव रखी गई।
एक किस्सा बेहद मशहूर है—साल 1985 में इंदौर कलेक्टर रहते उनके बंगले का फोन बजा। कॉल राजीव गांधी के पीए वी. जॉर्ज का था। आवाज आई—”तुम्हारे पास ढाई घंटे हैं, राजनीति में आना है या कलेक्टर ही रहना है?” इसके बाद दिग्विजय सिंह उनके घर पहुंचे और उसी पल अजीत जोगी कलेक्टर से कांग्रेस नेता बन गए।
पहले मुख्यमंत्री बनने का सफर
साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना और कांग्रेस ने अचानक अजीत जोगी के नाम का ऐलान पहले मुख्यमंत्री के रूप में कर दिया। उनके नाम की घोषणा ने सबको चौंका दिया। 2003 तक वे इस पद पर रहे। हालांकि 2003 के चुनाव में कांग्रेस हार गई, लेकिन जोगी मरवाही से जीत गए।
राजनीति में अद्भुत करिश्मा
2004 के लोकसभा चुनाव में जोगी ने महासमुंद से भाजपा में गए दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल को हराकर सबको हैरान कर दिया। यह जीत छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की जीत थी, क्योंकि राज्य की बाकी 10 सीटें भाजपा जीत चुकी थी।
2008, 2013 और 2018 तक जोगी और उनके परिवार की पकड़ मरवाही विधानसभा सीट पर मजबूत रही। जनसभाओं में उनकी ठेठ छत्तीसगढ़ी बोली का जादू लोगों को बांधे रखता था।
शब्दों के जादूगर और जननेता
अजीत जोगी न सिर्फ राजनीति में बल्कि अपने भाषणों के लिए भी जाने जाते थे। वे ठेठ छत्तीसगढ़ी में जनता से संवाद करते और उनकी सभाओं में हमेशा भारी भीड़ उमड़ती थी। यही कारण है कि जोगी का नाम छत्तीसगढ़ की राजनीति का पर्याय बन गया।
