बस्तर का दलपत सागर संकट में: 13 करोड़ खर्च के बाद भी नहीं थमा प्रदूषण, अब वैज्ञानिक समाधान की दरकार

बस्तर, 31 अगस्त 2025।
बस्तर की ऐतिहासिक धरोहर दलपत सागर आज संकट में है। लगभग 400 साल पहले राजा दलपत देव ने इस विशाल तालाब का निर्माण जल संचयन, खेती और मछली पालन के उद्देश्य से कराया था। कभी 350 एकड़ में फैला यह तालाब आज अतिक्रमण और प्रदूषण के कारण केवल 120 एकड़ तक सिमट चुका है। गंदगी, घरेलू कचरा और जलकुंभी ने इसकी हालत बेहद खराब कर दी है।

पिछले 20 वर्षों में लगभग 13 करोड़ रुपये खर्च किए जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं। जलकुंभी की सफाई का काम जारी है, लेकिन यह स्थायी समाधान साबित नहीं हो रहा।

दुर्ग विश्वविद्यालय की पीएचडी शोधार्थी और बस्तर विश्वविद्यालय में गेस्ट लेक्चरर अरुणिमा बासु रॉय बताती हैं कि दलपत सागर में बढ़ते मैकेनिकल और घरेलू कचरे के कारण पानी में फॉस्फेट और नाइट्रोजन की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच रही है। “सिर्फ सफाई से समस्या खत्म नहीं होगी। यह एक वैज्ञानिक रूप से विकसित समस्या है, जिसका हल भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही संभव है,” उन्होंने कहा।

शोध में यह भी सामने आया है कि पानी में रसायनों की पीपीएम मात्रा इतनी अधिक है कि पूरी जलकुंभी हटाने के बाद भी यह दोबारा पनप जाती है। इसलिए सबसे पहले उन स्रोतों को बंद करना होगा, जो तालाब को दूषित कर रहे हैं।

जगदलपुर के महापौर संजय पांडे ने जानकारी दी कि दलपत सागर को संवारने के लिए लगभग 9 करोड़ 88 लाख रुपये की स्वीकृति मिली है। इसमें तालाब की सफाई, जलकुंभी हटाने और वॉटर फ्रंट डेवलपमेंट जैसे कार्य शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सभी कार्य NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के नियमों को ध्यान में रखकर किए जाएंगे।

स्थानीय लोगों का कहना है कि दलपत सागर केवल एक जलाशय नहीं, बल्कि बस्तर की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर है। यदि इसे अब भी नहीं बचाया गया, तो आने वाली पीढ़ियां इसकी ऐतिहासिक और पर्यावरणीय महत्व से वंचित रह जाएंगी।