नागपुर, 30 अगस्त 2025।
साल 2009 की वह भयावह दोपहर आज भी नागपुर की यादों में जिंदा है जब 7 वर्षीय बच्ची योगिता ठाकरे का शव भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के आवास के पास खड़ी कार से बरामद हुआ था। मासूम के शरीर पर चोट के निशान थे और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दम घुटने से मौत का उल्लेख किया गया था।
महाराष्ट्र सीआईडी ने दो बार इस मामले को “दुर्घटनावश मौत” बताकर बंद करने की कोशिश की। उनका दावा था कि बच्ची गलती से कार की डिक्की में बंद हो गई थी और दम घुटने से उसकी मौत हुई। लेकिन स्थानीय अदालत ने इन क्लोज़र रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया और कहा कि जांच अधूरी और त्रुटिपूर्ण है।
योगिता की मां ने आरोप लगाया कि उनकी बच्ची की हत्या की गई और उसके साथ दुष्कर्म की भी आशंका है। उन्होंने न्यायालय और सरकार से बार-बार अपील की कि इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए। हालांकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की मांग को खारिज कर दिया और जांच राज्य सीआईडी के पास ही रही।
न्यायिक घटनाक्रम:
- 2010 में बंबई हाई कोर्ट ने यह कहते हुए जांच सीआईडी को सौंपी कि स्थानीय पुलिस मामले को दबा रही है।
- 2011 में मजिस्ट्रेट निलीमा के. पाटिल ने सीआईडी की क्लोज़र रिपोर्ट खारिज कर नई जांच के आदेश दिए।
- 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की मांग को ठुकराया।
- अदालतों ने बार-बार जांच में खामियां गिनाईं और नए सिरे से जांच का आदेश दिया, लेकिन अब तक ठोस नतीजे नहीं निकले।
योगिता के पिता ने गडकरी के कुछ कर्मचारियों और अन्य लोगों पर शक जताया था, लेकिन जांच कभी निर्णायक मुकाम तक नहीं पहुंच सकी। अदालत ने पिता की याचिका को निजी आपराधिक शिकायत के रूप में दर्ज किया, मगर मुकदमा आगे नहीं बढ़ पाया।
आज, 16 साल बाद भी इस मामले में कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। परिवार अब भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है और मां की जुबान पर सिर्फ एक सवाल है—“हमारी बच्ची को न्याय कब मिलेगा?”
