नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच बिलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट (BTA) को लेकर औपचारिक वार्ताएं इस समय टल गई हैं। सूत्रों के अनुसार, भले ही भारत सरकार 25% अतिरिक्त अमेरिकी शुल्क को वार्ता की “पूर्व शर्त” नहीं मानती, लेकिन इस भारी शुल्क के रहते एक संपूर्ण व्यापारिक समझौते को आगे बढ़ाना व्यावहारिक नहीं होगा।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों के वार्ताकार लगातार संपर्क में हैं, लेकिन अभी तक औपचारिक दौर की तारीख तय नहीं हो पाई है। अगस्त के अंत में प्रस्तावित दौर फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
व्यापार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमें उम्मीद है कि हम जल्द ही वार्ता की मेज पर लौटेंगे। लेकिन हकीकत यह है कि जब तक 25% दंडात्मक शुल्क और 25% प्रतिशुल्क का मसला हल नहीं होता, तब तक पूरी पैकेज डील पर चर्चा व्यावहारिक नहीं होगी।”
इधर, निर्यातक संगठनों ने सरकार से राहत के लिए ब्याज सब्सिडी, ऋण पुनर्भुगतान में मोहलत और कर्ज सहायता जैसी मांगें रखी हैं। मुख्य समस्या तरलता (liquidity) की कमी की बताई गई है। इस पर सरकार काम कर रही है और जल्द समाधान की उम्मीद जताई जा रही है।
अधिकारियों ने यह भी साफ किया है कि सरकार निर्यात प्रोत्साहन के तौर पर बहुत बड़े पैमाने पर सब्सिडी नहीं दे सकती, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय नियम इसकी अनुमति नहीं देते। लेकिन मौजूदा हालात में जब 50% तक शुल्क लगने से निर्यात लगभग असंभव हो गया है, तब केवल प्रोत्साहन से समस्या का समाधान नहीं होगा।
सरकार का मानना है कि मध्यम अवधि में इस असर को कम करने के लिए तरलता उपाय, निर्यात विविधीकरण, अन्य मुक्त व्यापार समझौतों (FTA), घरेलू मांग की मजबूती और जल्द शुरू होने वाले एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन मददगार साबित होंगे।
इस घटनाक्रम से साफ है कि भारत अपने निर्यातकों को तत्काल राहत देने के साथ-साथ अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से संतुलित करने की रणनीति पर काम कर रहा है।
