फ्लोरिडा, 27 अगस्त 2025।
अमेरिका में एच-1बी वीज़ा को लेकर बहस तेज हो गई है। फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसैंटिस ने इसे “पूरी तरह घोटाला” बताते हुए कहा कि कंपनियां सस्ते विदेशी मज़दूरों, ख़ासकर भारत से आने वाले आईटी पेशेवरों को लाकर अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीन रही हैं।
डीसैंटिस का आरोप है कि कई अमेरिकी कंपनियां पहले स्थानीय कर्मचारियों से एच-1बी वीज़ा धारकों को ट्रेनिंग दिलवाती हैं और फिर उन्हीं कर्मचारियों की छंटनी कर देती हैं। उन्होंने सवाल किया—“जब हमारे अपने युवाओं को रोजगार चाहिए, तो हम विदेश से लोग क्यों बुला रहे हैं?”
इसी बीच अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने भी एच-1बी वीज़ा को “स्कैम” बताते हुए इमिग्रेशन सिस्टम में बड़े बदलावों की बात कही है। उन्होंने “गोल्ड कार्ड” योजना का प्रस्ताव रखा जिसके तहत कोई भी विदेशी व्यक्ति यदि अमेरिका में 5 मिलियन डॉलर का निवेश करता है तो उसे स्थायी निवास मिल सकता है।
दूसरी ओर, अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल का कहना है कि प्रवासी और स्थानीय मज़दूर एक-दूसरे के पूरक हैं। उनके मुताबिक, प्रवासी कर्मचारी नए विचार, निवेश और व्यापार लाकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को और मज़बूत करते हैं।
भारत पर असर
एच-1बी वीज़ा भारतीय आईटी पेशेवरों और इंजीनियरों के लिए अमेरिका का सबसे अहम वर्क वीज़ा माना जाता है। हर साल जारी होने वाले एच-1बी वीज़ा का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय युवाओं को ही मिलता है। अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियां—गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न, और ओरेकल जैसी दिग्गज—भारतीय इंजीनियरों पर काफी निर्भर हैं।
यदि इस वीज़ा पर रोक या सख्ती बढ़ती है तो इसका सीधा असर भारत के आईटी सेक्टर और युवाओं पर पड़ेगा, खासकर उन पर जो अमेरिका में नौकरी के सपने देखते हैं। उद्योग जगत का मानना है कि भारतीय पेशेवरों ने अमेरिका में न केवल तकनीकी विकास को आगे बढ़ाया है, बल्कि स्टार्टअप और इनोवेशन को भी गति दी है।
ट्रंप का उलझा रुख
पूर्व और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख इस मुद्दे पर हमेशा से विरोधाभासी रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति रहते हुए वीज़ा पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन उनकी अपनी कंपनियां भी इसी वीज़ा के ज़रिए कुशल कर्मचारी नियुक्त करती रही हैं। हाल ही में ट्रंप ने कहा—“हमें सक्षम लोग चाहिए, और अगर इसके लिए एच-1बी का इस्तेमाल करना पड़े तो यह गलत नहीं है। मैंने खुद इसका उपयोग किया है।”
स्पष्ट है कि एच-1बी वीज़ा अब सिर्फ अमेरिका के रोजगार की बहस का हिस्सा नहीं रहा, बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों और लाखों भारतीय युवाओं के भविष्य से भी जुड़ा मुद्दा बन गया है।
