नई दिल्ली, 25 अगस्त 2025।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री का खुलासा करना दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) की बाध्यता नहीं है, क्योंकि यह “निजी जानकारी” के दायरे में आती है। अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें डिग्री की जानकारी साझा करने के निर्देश दिए गए थे।
जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने कहा कि शैक्षणिक रिकॉर्ड किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार है, चाहे वह सार्वजनिक पद पर आसीन ही क्यों न हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल इस वजह से कि जानकारी किसी सार्वजनिक शख्सियत से जुड़ी है, उसकी निजता और गोपनीयता का अधिकार खत्म नहीं हो जाता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी पद पर नियुक्ति के लिए शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य शर्त होती, तब मामला अलग होता। लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए ऐसा कोई शैक्षणिक मानदंड तय नहीं है। इसलिए इस मामले में “जनहित” का आधार लागू नहीं होता।
अदालत में सुनवाई के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय ने दलील दी कि छात्रों की जानकारी वह “फिड्यूशियरी कैपेसिटी” यानी विश्वास की स्थिति में संभालता है। इसलिए इसे तीसरे पक्ष को नहीं दिया जा सकता। विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि वह अदालत के समक्ष पीएम मोदी की डिग्री प्रस्तुत करने के लिए तैयार है, लेकिन इसे “अनजानों के लिए सार्वजनिक” नहीं किया जा सकता।
वहीं, आरटीआई दाखिल करने वाले नीरज शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दलील दी कि प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति की डिग्री की जानकारी जनहित में सार्वजनिक होनी चाहिए। उनका कहना था कि पहले विश्वविद्यालय परिणाम और डिग्रियाँ सार्वजनिक स्थानों पर जारी करते थे।
कांग्रेस ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “देश के प्रधानमंत्री की डिग्री को गुप्त रखना समझ से परे है”। पार्टी ने आरोप लगाया कि यह फैसला 2019 में आरटीआई कानून में किए गए संशोधन के कारण संभव हुआ।
गौरतलब है कि पीएम मोदी की शैक्षणिक डिग्री लंबे समय से राजनीतिक विवाद का विषय रही है। विपक्षी दल लगातार उनकी डिग्री की सत्यता पर सवाल उठाते रहे हैं, जबकि भाजपा ने विश्वविद्यालयों द्वारा जारी डिग्रियों की प्रतियां सार्वजनिक की थीं।
