छत्तीसगढ़ में तीजा-पोरा तिहार: स्त्री शक्ति, लोक संस्कृति और परंपरा का जीवंत उत्सव

रायपुर, 24 अगस्त 2025।
सावन-भादो का महीना छत्तीसगढ़ की धरती पर लोकगीत, पारंपरिक नृत्य और स्त्रियों की खिलखिलाती हंसी से सराबोर रहता है। यही वह समय है जब पूरे प्रदेश में टीजा-पोरा तिहार मनाया जाता है। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति और महिलाओं के जीवन का अहम हिस्सा है।

महिलाओं का उत्सव
टीजा मूल रूप से विवाहित और नवविवाहित महिलाओं का पर्व है। महिलाएँ सुबह स्नान कर साड़ी, चूड़ी, बिंदी और पारंपरिक गहनों से सुसज्जित होकर व्रत रखती हैं। वे माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र, परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की भलाई की कामना करती हैं।

पोरा का स्वाद और लोकगीतों का संगम
इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण है ‘पोरा’—जो चावल और गुड़ से बनाया जाने वाला मीठा व्यंजन है। महिलाएँ दिनभर का व्रत रखने के बाद पोरा खाकर उपवास खोलती हैं। शाम ढलते ही गाँव-गाँव और शहरों में महिलाएँ सखी-सहेलियों संग इकट्ठी होती हैं, लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और मेल-जोल
टीजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए आत्मीय मिलन का पर्व है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरी इलाकों तक, जगह-जगह सामूहिक आयोजन होते हैं। पंडालों और ऑडिटोरियम में महिला सम्मेलन, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और झूले का आनंद लिया जाता है।

लोक परंपरा का संदेश
टीजा-पोरा तिहार छत्तीसगढ़ की मिट्टी से गहरे जुड़ा हुआ उत्सव है। यह न सिर्फ स्त्रियों के त्याग और शक्ति का प्रतीक है, बल्कि सामूहिकता, भाईचारे और लोक परंपरा को भी संजोकर रखता है। यही कारण है कि तीजा आज भी छत्तीसगढ़ी समाज की आत्मा में बसा हुआ है।