बस्तर में अद्भुत परंपरा: देवताओं पर भी चलता है मुकदमा, दोषी पाए जाने पर सजा

बस्तर, छत्तीसगढ़, 23 अगस्त 2025: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक अनोखी और अद्वितीय परंपरा आज भी जीवित है, जहां देवताओं को भी उनके कर्तव्यों में चूक पर न्याय के कटघरे में लाया जाता है। यह परंपरा विशेषकर कोंडागांव जिले में आयोजित होने वाले भादो जत्रा उत्सव के दौरान दिखाई देती है।

तीन दिन की न्यायिक प्रक्रिया:
भादो जत्रा के तीन दिनों में भंगाराम देवी मंदिर और पास के मैदान में हजारों आदिवासी और फरियादी उपस्थित रहते हैं। यहां देवताओं को प्रतीकात्मक रूप में अदालत में पेश किया जाता है। यदि वे अपनी जिम्मेदारियों में विफल पाए जाते हैं—जैसे प्राकृतिक आपदा, बीमारी या फसल खराब होने पर मदद न करना—तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है।

विशेष गवाह और सजा:
इस अद्भुत न्याय प्रणाली में एक मुर्गी को गवाह के रूप में पेश किया जाता है। दोषी पाए जाने पर देवताओं को मंदिर से अलग कर निर्वासित या आजीवन पूजा से वंचित किया जाता है। वहीं यदि देवता अपनी गलतियों को सुधारते हैं, तो उन्हें पुनः पूजा जाता है।

सुधार और पुनर्वास का चक्र:
मानव अदालतों की तरह, देवताओं को सुधार का मौका भी मिलता है। यदि वे सही निर्णय लेते हैं और गाँव की भलाई सुनिश्चित करते हैं, तो उन्हें सम्मान के साथ पुनः पूजा जाता है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व:
बस्तर में यह परंपरा भक्ति, न्याय और सामाजिक समानता का अनोखा संगम है। आदिवासी समुदाय के लोग मानते हैं कि देवताओं को भी उनके कर्तव्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, मानव रूप में सेवा देने वाले व्यक्तियों, जैसे खान देवता, को भी देवता का दर्जा दिया गया और उनकी मूर्तियाँ पूजा के लिए स्थापित की जाती हैं।

पारदर्शिता और दस्तावेज़ीकरण:
मुकदमे की हर प्रक्रिया का बकायदा लेखाजोखा रखा जाता है। कितने देवताओं पर आरोप लगे, कितनों को सजा मिली और कितनों को पुनः पूजा में शामिल किया गया, सब कुछ लिखित में दर्ज किया जाता है।