रायपुर, 20 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ की धरती अपनी अनोखी जनजातीय परंपराओं, संस्कृति और जीवनशैली के लिए जानी जाती है। अब इन जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहन शोध का मार्ग खुल गया है। बिलासपुर स्थित गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय और ट्रायबल रिसर्च एंड नॉलेज सेंटर (टीआरकेसी) नई दिल्ली के बीच आज एक महत्वपूर्ण एमओयू हस्ताक्षरित हुआ।
विश्वविद्यालय की ओर से इस समझौते पर कुलसचिव प्रो. अभय एस. रणदिवे और टीआरकेसी की ओर से राज्य प्रभारी श्री राजीव शर्मा ने हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल, सौराष्ट्र विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. नीलांबरी दवे, वनवासी कल्याण आश्रम के अखिल भारतीय युवा कार्यप्रमुख श्री वैभव सुरंगे सहित अनेक प्राध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
एमओयू के तहत अगले तीन वर्षों तक बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की जनजातियों पर व्यापक शोध कार्य होंगे। इन शोधों से न केवल जनजातीय समाज की गौरवशाली परंपराओं और उनकी जीवनशैली का दस्तावेजीकरण होगा, बल्कि उनकी आर्थिक संरचना, ग्रामीण उद्यमिता, सतत् विकास, सुशासन और सामाजिक संगठन जैसे पहलुओं पर भी प्रकाश डाला जाएगा।
राज्य प्रभारी श्री राजीव शर्मा ने बताया कि यह पहल जनजातीय युवाओं को अपने गौरवशाली अतीत से जोड़ने का अवसर देगी। “जनजातीय समाज की अनगिनत अनसुनी कहानियाँ और उनकी सभ्यता से जुड़े पहलू अब शैक्षणिक शोध का हिस्सा बनेंगे, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी उनसे परिचित हो सकें,” उन्होंने कहा।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. रणदिवे ने जानकारी दी कि इस साझेदारी से संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ, क्षेत्रीय केस स्टडी, नेतृत्व विकास कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होंगे। युवाओं के लिए सामाजिक प्रभाव आधारित स्टार्टअप और नवाचार परामर्श सत्र भी रखे जाएंगे। वहीं शोध के निष्कर्षों को पुस्तकों, प्रकाशनों और डेटाबेस के माध्यम से आम जनता और शैक्षणिक संस्थानों तक पहुँचाया जाएगा।
यह पहल न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वयं जनजातीय समाज को अपनी जड़ों से परिचित कराते हुए उन्हें आत्मगौरव और प्रेरणा भी प्रदान करेगी।
