18 अगस्त 1936 को झेलम ज़िले के दीना गाँव (आज के पाकिस्तान) में जन्मे सम्पूर्ण सिंह कालरा, जिन्हें पूरी दुनिया गुलज़ार के नाम से जानती है, अपने शब्दों के जादू से हिंदी सिनेमा और साहित्य को नई ऊँचाइयों पर ले गए।
बचपन में बँटवारे का दर्द और विस्थापन का घाव उन्होंने झेला। पर उसी दर्द को उन्होंने कविता और गीतों में ढाल दिया। वे कहा करते हैं—
“ज़ख्म अगर दिल में रह जाए, तो वह कविता बनकर बाहर आता है।”
सफ़र: रंग-रोगन से गीतों तक
मुम्बई आकर उन्होंने कार गैराज में रंग-पुताई का काम किया, लेकिन उनकी डायरी में शब्दों की नमी हमेशा बनी रही। वहीं से उनकी लेखनी का सफ़र शुरू हुआ और धीरे-धीरे वे गीतकार, पटकथा लेखक और निर्देशक बन गए।
“चौरस रात” (1962) और “जानम” (1963) उनकी शुरुआती साहित्यिक पहचान बनी।
फिर फ़िल्मों ने उन्हें एक नया मंच दिया—
- मेरे अपने (1971)
- कोशिश (1972)
- आँधी (1975)
- अंगूर (1980)
- माचिस (1996)
इनकी कहानियाँ रिश्तों और मानवीय भावनाओं की गहराई को सामने लाईं।
उनके लिखे गीत तो हर दिल का आईना बन गए।
जब उन्होंने लिखा “तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं…” तो हर अधूरे रिश्ते ने उसमें अपनी कहानी देखी।
जब उन्होंने कहा “मुसाफ़िर हूँ यारों…” तो वह हर भटकते इंसान का गीत बन गया।
और 2009 का “जय हो”, जिसने उन्हें ऑस्कर और ग्रैमी दिलाए, ने उनकी कलम को दुनिया भर में पहचान दिलाई।
परिवार: रिश्तों की गहराई
गुलज़ार की निजी ज़िंदगी भी किसी कहानी से कम नहीं। उनकी शादी मशहूर अभिनेत्री राखी से हुई। दोनों के रास्ते समय के साथ अलग हो गए, लेकिन सम्मान और आत्मीयता का रिश्ता हमेशा बना रहा।
उनकी बेटी मेघना गुलज़ार ने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया। उन्होंने फ़िल्म निर्देशक के रूप में अपना अलग मुक़ाम बनाया।
- राज़ी (2018) ने उन्हें नई पहचान दी।
- छपाक (2020) ने समाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर उनकी संवेदनशीलता को दिखाया।
गुलज़ार और मेघना का रिश्ता सिर्फ़ पिता-पुत्री का नहीं, बल्कि एक गुरु-शिष्य जैसा भी है। मेघना अक्सर कहती हैं—
“पापा की लिखावट और सोच मेरे लिए सबसे बड़ी विरासत है।”
सम्मान और धरोहर
गुलज़ार को कई पुरस्कार मिले—
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (2002)
- पद्मभूषण (2004)
- दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2013)
- और दुनिया भर का सम्मान उनके गीतों ने दिलाया।
पर असली पुरस्कार है—हमारी स्मृतियों में हमेशा जीवित रहना। उनके गीत, उनकी कहानियाँ और उनकी कविताएँ हमें बार-बार जीवन की गहराइयों से रूबरू कराती हैं।
गुलज़ार सिर्फ़ एक शायर नहीं, बल्कि एक पिता, एक इंसान और एक ऐसा कलाकार हैं, जिन्होंने दर्द को मोहब्बत और अल्फ़ाज़ में बदलकर पूरी दुनिया को विरासत दी।
