चुनावी सूचियों पर विवाद: बिहार से कर्नाटक तक गड़बड़ियों के आरोपों के बीच चुनाव आयोग के ‘फैक्ट चेक’ पर उठे सवाल

नई दिल्ली, 19 अगस्त। देश की सबसे अहम लोकतांत्रिक संस्था — चुनाव आयोग (EC) — इन दिनों सवालों के घेरे में है। बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर विपक्ष का विरोध तेज़ है और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट की मतदाता सूची में गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया है।

पिछले कुछ हफ़्तों में सामने आई रिपोर्ट्स और स्वतंत्र संस्थाओं की पड़ताल ने आयोग की विश्वसनीयता पर और सवाल खड़े कर दिए हैं। अध्ययन से सामने आया कि आयोग द्वारा जारी किए गए कई तथाकथित “फैक्ट चेक” अधूरे, भ्रामक और कभी-कभी वास्तविक तथ्यों से परे साबित हुए।


📌 मामला 1: डिजिटल सूची की जगह स्कैन कॉपी

9 अगस्त को Scroll की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बिहार में जारी डिजिटल ड्राफ्ट वोटर लिस्ट की जगह स्कैन कॉपी डाल दी गई। इससे त्रुटियों को पकड़ना मुश्किल हो गया क्योंकि स्कैन कॉपी में सर्च फ़ंक्शन काम नहीं करता। आयोग ने जवाब में कहा कि 1 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट रोल में कोई बदलाव नहीं हुआ है। लेकिन यह जवाब रिपोर्ट के वास्तविक आरोप से मेल ही नहीं खाता।


📌 मामला 2: फर्जी हस्ताक्षर का आरोप

रिपोर्ट में पटना के फूलवारी विधानसभा क्षेत्र में बीएलओ (BLO) द्वारा मतदाताओं के फर्जी हस्ताक्षर करने का मामला सामने आया। प्रशासन ने पहले इसे “डेड” या “शिफ़्टेड” लिखकर BLO के अपने हस्ताक्षर बताने की कोशिश की। बाद में बयान बदलते हुए कहा गया कि मृत मतदाताओं के नाम उनके हस्ताक्षर कॉलम में लिख दिए गए थे। यह सफाई और भी सवाल खड़े करती है क्योंकि भारतीय क़ानून के अनुसार किसी और के नाम को हस्ताक्षर कॉलम में लिखना फर्जीवाड़ा माना जा सकता है।


📌 मामला 3: राहुल गांधी का आरोप बनाम EC का दावा

राहुल गांधी ने 7 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबूत दिखाए कि कुछ मतदाता — जैसे आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह — कई राज्यों (कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश) की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं।
उत्तर प्रदेश के सीईओ ने दावा किया कि ये नाम केवल कर्नाटक सूची में हैं। लेकिन जांच में इन मतदाताओं के नाम यूपी की मतदाता सूची में भी मिले। इतना ही नहीं, आयोग के बयान में दर्ज रिश्तेदारों के नाम तक वास्तविक सूची से मेल नहीं खाते थे।


📌 मामला 4: राहुल गांधी से ‘शपथ पत्र’ की मांग

राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर EC ने कहा कि अगर वे अपने आरोपों को सही मानते हैं तो रजिस्ट्रेशन ऑफ वोटर्स रूल्स, 1960 के तहत शपथ पत्र देकर CEO को सौंपें। आयोग ने इसे भी “फैक्ट चेक” कहा, जबकि असल में यह केवल कानूनी प्रक्रिया का हवाला था, न कि तथ्यों की जांच।


📌 मामला 5: ‘30,000 फर्जी पते’ का दावा

कांग्रेस ने 10 अगस्त को आरोप लगाया कि मतदाता सूची में 30,000 से अधिक फर्जी पते हैं जैसे “0”, “00”, “-“, “#”, आदि। EC ने फिर राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि या तो वे शपथ पत्र दें और दावा साबित करें या जनता को गुमराह करने के लिए माफ़ी मांगें।


🗣️ लोकतंत्र और भरोसे का सवाल

इन तमाम मामलों ने आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। एक ओर विपक्ष लगातार आरोपों की झड़ी लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर आयोग के “फैक्ट चेक” उलझन बढ़ा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मतदाता सूची में गड़बड़ियों के आरोप केवल तकनीकी या प्रक्रियागत नहीं, बल्कि लोकतंत्र में विश्वास के संकट की निशानी हैं।