नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025।
जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद राज्यसभा को नया सभापति मिल गया है। भाजपा ने इस बार तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता और संगठन से लंबे समय से जुड़े सी.पी. राधाकृष्णन पर भरोसा जताया है। उनका चयन पार्टी की दक्षिण भारत में पैठ बनाने की रणनीति और OBC सामाजिक समीकरण को साधने का संकेत माना जा रहा है।
जगदीप धनखड़, जो अपने तेज-तर्रार और टकराव भरे अंदाज के लिए जाने जाते थे, विपक्ष की नज़र में हमेशा पक्षपाती दिखाई दिए। बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी सरकार के साथ उनके विवाद सुर्खियों में रहते थे। उनकी यही शैली राज्यसभा तक पहुँची और अक्सर सदन में सहमति बनाना मुश्किल हो जाता था।
इसके विपरीत, राधाकृष्णन को मृदुभाषी और समावेशी नेता माना जाता है। संघ और जनसंघ से 17 साल की उम्र से जुड़े होने के कारण उनकी वैचारिक जड़ें भाजपा और आरएसएस में गहरी हैं। उनकी पहचान एक संतुलित और धैर्यवान राजनेता की है, जो कठिन हालात में भी संवाद और सहमति का रास्ता तलाशते हैं।
राधाकृष्णन ने हाल ही में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से राजनीतिक संवाद साधा और उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म वाले बयान पर संयमित प्रतिक्रिया दी। महाराष्ट्र में भी उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करते हुए विपक्ष की चिंताओं को सुना, पर अनावश्यक हस्तक्षेप से बचे।
जगदीप धनखड़ ने मौजूदा संसद सत्र के पहले दिन ही अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दिया। लेकिन सूत्रों का कहना है कि विपक्ष द्वारा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को सरकार से बिना परामर्श स्वीकार करना उनकी विदाई का अहम कारण बना।
राजनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि भाजपा ने इस बार ऐसा चेहरा चुना है जो राजनीतिक टकराव की बजाय संवाद और सहमति का माहौल बना सके। जहाँ धनखड़ जातीय और क्षेत्रीय पहचान से जुड़े हुए माने जाते थे, वहीं राधाकृष्णन राष्ट्रीय समावेशिता के प्रतीक के तौर पर सामने आए हैं।
संसद के कई वरिष्ठ सदस्यों का मानना है कि राज्यसभा की गरिमा और सुचारु संचालन के लिए राधाकृष्णन का स्वभाव कहीं अधिक उपयुक्त साबित हो सकता है।
