नई दिल्ली, 14 अगस्त 2025।
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में भेजने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मचे बवाल के बीच, आज एक अन्य पीठ ने हैरानी जताई कि आदेश सार्वजनिक होने से पहले ही कई इलाकों में कुत्तों को पकड़ना क्यों शुरू कर दिया गया। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि पशु नियंत्रण के लिए जो दिशा-निर्देश पहले से मौजूद हैं, उन्हें लागू ही नहीं किया गया, और इसी लापरवाही से यह स्थिति बनी है।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजनिया की पीठ ने यह मामला सुना। इससे पहले 11 अगस्त को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने आदेश दिया था कि सभी आवारा कुत्तों को आवासीय क्षेत्रों से हटाकर शेल्टर में रखा जाए, जिसके खिलाफ पशु प्रेमी सड़कों पर उतर आए थे।
सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आवारा कुत्तों के हमलों में बच्चे घायल हो रहे हैं और कई की मौत भी रैबीज़ से हो चुकी है। उन्होंने बताया कि पिछले साल देशभर में 37 लाख डॉग बाइट के मामले दर्ज हुए। “बच्चे बाहर खेलने नहीं जा सकते, युवतियों पर हमले हो रहे हैं। कुत्तों को मारना नहीं है, अलग रखना है,” उन्होंने कहा।
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पशु कल्याण संस्था ‘प्रोजेक्ट काइंडनेस’ की ओर से दलील दी कि आदेश लागू ही नहीं किया जा सकता क्योंकि पर्याप्त शेल्टर होम हैं ही नहीं। “जहां कुत्तों को रखा जाएगा, वहां वे एक-दूसरे पर हमला करेंगे। यह महामारी जैसी स्थिति होगी,” उन्होंने चेताया और आदेश पर रोक लगाने की मांग की।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि आदेश में जरूरी बुनियादी ढांचे को नज़रअंदाज़ किया गया है और इससे “भयावह स्थिति” पैदा होगी।
पीठ ने कहा, “एक तरफ इंसान पीड़ित हैं, तो दूसरी तरफ पशु प्रेमी अपनी बात रख रहे हैं, लेकिन कानून तो संसद बनाती है, फिर भी लागू क्यों नहीं होते?” सुनवाई के बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया।
