स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय में परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप, सुशासन पर उठ रहे सवाल

भिलाई, 14 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ सरकार खुद को “सुशासन की सरकार” कहती है, लेकिन प्रदेश के एकमात्र तकनीकी विश्वविद्यालय — स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय, भिलाई — में हालात कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। यहां इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक और फार्मेसी कॉलेजों की संबद्धता होती है, लेकिन बीते कई वर्षों से प्रशासनिक व्यवस्था बुरी तरह चरमराई हुई है।

विश्वविद्यालय से जुड़े छात्र-छात्राओं का कहना है कि परीक्षा परिणाम, अंकसूची, प्रोविजनल डिग्री या माइग्रेशन सर्टिफिकेट जैसे बुनियादी काम के लिए महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं होती। छात्र संगठन और स्थानीय बुद्धिजीवी इसे “भ्रष्टाचार और परिवारवाद का गढ़” कहने लगे हैं।

2018 से शुरू हुआ कथित कब्ज़ा
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 के अंत से विश्वविद्यालय में एक विशेष वर्ग का प्रभाव बढ़ा, जो आज भी कायम है। पूर्व कुलपति के रिश्तेदार और पूर्व कुलसचिव की बेटी-दामाद को वर्ष 2020 में लखनपुर अंबिकापुर से बिना शासन अनुमति के भिलाई में संलग्न कर दिया गया। यह संलग्नीकरण सुशासन सरकार के कार्यकाल में खत्म कर दिया गया, लेकिन आदेश के बावजूद दोनों की पदस्थापना नहीं बदली।

आदेश का अनुपालन क्यों नहीं?
मार्च 2024 में सरकार ने इन दोनों को मूल पदस्थापना में लौटाने का आदेश दिया था, लेकिन कथित तौर पर “शासन पत्र चोरी” की कहानी गढ़ी गई और मई 2025 में पुलिस थाने में एफआईआर करवा दी गई। नतीजा—आज भी दोनों अपनी जगह कायम हैं।

कुलसचिव का प्रभार भी दामाद को
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले दो वर्षों से विश्वविद्यालय में कुलसचिव की नियमित नियुक्ति ही नहीं की गई। इसके बजाय पूर्व कुलसचिव ने अपने दामाद अंकित अरोरा, जो सहायक प्राध्यापक हैं, को कुलसचिव का प्रभार देकर खुद मूल संस्था में लौटकर सेवा निवृत्त हो गए। जबकि विश्वविद्यालय में नियमित प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर मौजूद थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी दी जा सकती थी।

सरकार की चुप्पी, छात्रों की परेशानी
उपमुख्यमंत्री और तकनीकी शिक्षा मंत्री विजय शर्मा को इन मामलों की पूरी जानकारी होने के बावजूद, छात्रों का कहना है कि अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। डेढ़ साल से अधिक समय में तकनीकी शिक्षा से जुड़े छात्र-हितैषी निर्णय का अभाव सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रहा है।

छात्र कहते हैं — “मनमानी फीस दो, फिर भी परिणाम और डिग्री के लिए महीनों परेशान हो।”
राजभवन और सरकार तक दर्जनों शिकायतें पहुंची हैं, लेकिन जांच के नाम पर फाइलें धूल खा रही हैं।