दुर्ग, 13 अगस्त 2025।
डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस के दौर में जहां सरकारी सेवाओं को तेज़, पारदर्शी और समयबद्ध बनाने के दावे होते हैं, वहीं दुर्ग तहसील कार्यालय की हकीकत इन दावों पर सवाल खड़े कर रही है। यहां डेढ़ से दो महीने से जाति और निवासी प्रमाण पत्र लंबित पड़े हैं। आवेदक रोज़ाना तहसील के चक्कर काटने को मजबूर हैं, लेकिन फाइलें अब भी अलमारियों और टेबलों में धूल फांक रही हैं।
गांव से आवेदक बताते हैं, “मैं रोज़ाना खेत का काम छोड़कर यहां आता हूं, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया जाता है। कोई कहता है अधिकारी मीटिंग में हैं, कोई कहता है फाइल प्रोसेस में है।”
ऑनलाइन सिस्टम भी बेअसर
आवेदकों का कहना है कि प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन और फीस जमा करने के बावजूद हफ्तों तक कोई जवाब नहीं मिलता। डिजिटल पोर्टल पर “प्रोसेसिंग” का स्टेटस हफ्तों तक जस का तस रहता है। कई लोग 20-30 किलोमीटर दूर से बस या बाइक से आते हैं, लेकिन उन्हें सिर्फ यह कहकर लौटा दिया जाता है कि “अभी काम चल रहा है” या “तहसीलदार/अतिरिक्त तहसीलदार मौजूद नहीं हैं”।
अधिकारियों की गैरहाज़िरी पर नाराज़गी
स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि तहसीलदार और अतिरिक्त तहसीलदार अधिकतर समय अपने कमरों में नहीं होते और शेष समय निजी वार्तालाप या चाय-पानी में बीतता है। इस वजह से गरीब और ग्रामीण आवेदकों का समय, श्रम और पैसा—तीनों बर्बाद हो रहे हैं।
भविष्य पर असर
समय पर प्रमाण पत्र न मिलने से कई छात्रवृत्ति, नौकरी और सरकारी योजनाओं के आवेदक आवेदन की अंतिम तिथि गँवा रहे हैं। एक कॉलेज छात्रा ने कहा, “मैंने 45 दिन पहले निवासी प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। अब छात्रवृत्ति की लास्ट डेट निकलने वाली है। अगर समय पर प्रमाण पत्र नहीं मिला तो मेरा पूरा साल खराब हो जाएगा।”
नागरिकों ने जिला प्रशासन से तुरंत कार्रवाई करने और लापरवाह अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है। उनका कहना है कि अगर डिजिटल इंडिया के नाम पर सिर्फ कागजी दावे होंगे, तो आम जनता का विश्वास सरकारी तंत्र पर से उठ जाएगा।
