दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम आदेश जारी करते हुए दिल्ली सरकार और एनसीआर के गुरुग्राम, नोएडा व गाजियाबाद की नगर निकाय संस्थाओं को निर्देश दिया है कि सभी आवारा कुत्तों को तुरंत स्थानीय इलाकों से हटाकर शेल्टर में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए। अदालत ने कहा कि यह काम छह से आठ सप्ताह के भीतर शुरू होना चाहिए और इसके लिए कम से कम 5,000 कुत्तों की क्षमता वाले आश्रय स्थल तैयार किए जाएं।
इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर गर्मागर्म बहस छिड़ गई। कई रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों (RWAs) ने इसे राहत भरा कदम बताया, वहीं पशु प्रेमियों और कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि जमीन और संसाधनों की कमी के चलते यह “विशाल” काम अव्यवस्था और इंसान-पशु टकराव को और बढ़ा सकता है।
एक उपयोगकर्ता ने टिप्पणी की—
“प्रिय आवारा कुत्ता प्रेमियों, अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इतनी तकलीफ है तो कुछ कुत्तों को अपने घर ले जाइए। उनके टीकाकरण, प्रशिक्षण और इलाज का खर्च उठाइए। घर की बासी रोटियां खिलाना आपको पशु-प्रेमी नहीं बनाता।”
दूसरी ओर, एक अन्य ने लिखा—
“किसी तीन साल के बच्चे की जान का खतरा सिर्फ इसलिए नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई आवारा कुत्तों के प्रति संवेदनशील है।”
कुछ लोग इस फैसले के समर्थन में बोले, तो कुछ ने इसे करुणा और कानून दोनों के खिलाफ बताया। एक पशु अधिकार कार्यकर्ता ने कहा—
“यह आदेश न केवल पशु जन्म नियंत्रण नियम 2023 का उल्लंघन है, बल्कि संवैधानिक कर्तव्यों और करुणा की भावना को भी कुचलता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि इन आश्रयों में पर्याप्त स्टाफ हो, नसबंदी और टीकाकरण की सुविधा हो, सीसीटीवी से निगरानी हो, और भविष्य में इन्हें बढ़ाने की योजना तैयार की जाए। साथ ही, डॉग बाइट मामलों की रिपोर्टिंग के लिए हेल्पलाइन भी शुरू करनी होगी। अदालत ने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में बाधा डालने वालों पर अवमानना की कार्रवाई होगी।
इस बीच, कुछ लोग उम्मीद जता रहे हैं कि यह कदम मानवीय तरीके से, बेहतर सुविधाओं और कुत्तों की भलाई पर ध्यान देकर लागू किया जाएगा, ताकि हर हिलती पूंछ को डर नहीं, बल्कि सुकून का ठिकाना मिले।
