राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ आरोप: महादेवपुरा से शुरू हुआ राजनीतिक भूचाल

नई दिल्ली, 8 अगस्त 2025।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 7 अगस्त को कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कथित ‘वोट चोरी’ का बड़ा आरोप लगाते हुए भारतीय लोकतंत्र के मूल ढांचे पर सवाल खड़ा कर दिया। गांधी ने दावा किया कि उनकी 40 सदस्यीय टीम ने छह महीने की मेहनत के बाद महादेवपुरा विधानसभा (बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट) के मतदाता सूची में 1 लाख 250 संदिग्ध वोटों का खुलासा किया है।

राहुल गांधी के अनुसार, ये हेरफेर न केवल प्रशासनिक लापरवाही है बल्कि चुनाव आयोग (ECI) और बीजेपी के बीच मिलीभगत का नतीजा है। उन्होंने आरोप लगाया कि—

  • 11,965 डुप्लीकेट वोट
  • 40,009 फर्जी या अस्तित्वहीन पते
  • 10,452 बल्क वोट एक ही पते पर दर्ज
  • 4,132 वोटरों की फोटो ग़लत या गायब
  • 33,692 मामलों में फॉर्म-6 का दुरुपयोग (वरिष्ठ नागरिकों को “नए मतदाता” के रूप में पंजीकृत)

राहुल का दावा है कि यह कोई ‘मतदाता जोड़ने की प्रक्रिया’ नहीं बल्कि ‘वोट चोरी’ है। महादेवपुरा में बीजेपी को 1,14,000 से ज्यादा वोटों की बढ़त मिली, जिसने अन्य छह विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की बढ़त को खत्म कर दिया और बीजेपी को बेंगलुरु सेंट्रल सीट 32,000 वोटों के अंतर से दिला दी।

राहुल ने यह भी कहा कि समस्या केवल महादेवपुरा तक सीमित नहीं है। उनका आरोप है कि कई राज्यों में एक ही मतदाता का नाम अलग-अलग सूचियों में दर्ज है, यहां तक कि 68 वोटर एक ही शराब फैक्ट्री के पते पर दर्ज हैं।

चुनाव आयोग ने राहुल से शपथपत्र के साथ सबूत देने को कहा है, लेकिन तत्काल जांच के बजाय यह रुख विपक्ष को ‘संवेदनहीन’ लगा। राहुल ने देशभर के लिए 10-15 साल के मशीन-रीडेबल वोटर डेटा और पोलिंग बूथों के सीसीटीवी फुटेज की मांग की है।

हालांकि, आलोचकों ने यह भी सवाल उठाया कि अगर गड़बड़ी इतनी आसान है, तो बीजेपी केवल 240 सीटों तक क्यों सीमित रही? राहुल का तर्क है कि हेरफेर ‘रणनीतिक’ रूप से की जाती है—इतनी कि परिणाम पलट जाए, लेकिन इतनी नहीं कि शक गहरा हो।

कांग्रेस ने फिलहाल कोर्ट जाने को लेकर कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की, लेकिन राहुल का कहना है कि न्यायपालिका को इसमें दखल देना चाहिए।

यह मामला चाहे प्रशासनिक विफलता हो या सुनियोजित साजिश—यह स्पष्ट है कि भारत की मतदाता सूचियों की सफाई और पारदर्शिता अब बेहद जरूरी है। लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता ही जन विश्वास की नींव है, और इस पर किसी भी तरह का दाग देश की साख को चोट पहुंचा सकता है।