नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025।
देश के वरिष्ठ राजनेता और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 5 अगस्त को निधन हो गया। 79 वर्षीय मलिक लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। मंगलवार सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन पर देशभर में शोक की लहर दौड़ गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मलिक के निधन पर शोक जताया। उन्होंने ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा:
“सत्यपाल मलिक जी के निधन से दुखी हूं। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं। ओम शांति।”
छात्र राजनीति से शुरू हुआ सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ था। छात्र राजनीति से उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत हुई और उन्होंने कई पार्टियों का सफर तय किया।
वे पहली बार भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत विधानसभा से विधायक चुने गए थे, उस समय पार्टी की अगुवाई चौधरी चरण सिंह कर रहे थे। बाद में वह राष्ट्रीय लोक दल के महासचिव बने और 1980 में राज्यसभा पहुंचे।
बोफोर्स घोटाले के बाद छोड़ी कांग्रेस
1984 में मलिक ने कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन बोफोर्स घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसके बाद वह जनता दल में शामिल हो गए और 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा सांसद बने।
हालांकि, इसके बाद उनका चुनावी सफर सफल नहीं रहा। 1996 में सपा, और 2004 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
गवर्नर के रूप में बनाई खास पहचान
2012 में भाजपा ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया और 2017 में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, जो उनके कार्यकाल की सबसे अहम घटनाओं में से एक थी।
सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप
बाद में उन्हें गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया गया। अपने गवर्नर कार्यकाल के अंतिम समय में सत्यपाल मलिक ने केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेताओं पर भी सवाल उठाए, जिसकी वजह से वे सुर्खियों में रहे।
राजनीतिक व्यक्तित्व
सत्यपाल मलिक को उनके बगावती तेवर, साफगोई और बेबाकी के लिए जाना जाता था। वे कभी भी सत्ता के सामने झुकते नहीं दिखे और अपनी बात खुलकर रखते रहे।
उनके निधन से भारतीय राजनीति ने एक ऐसा चेहरा खो दिया, जिसने सत्ता और विपक्ष दोनों के साथ अपने अनुभव साझा किए और हमेशा बेबाक राय दी।
