दुर्ग, 2 अगस्त 2025 —
छत्तीसगढ़ की एक विशेष एनआईए अदालत ने जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोपों में गिरफ्तार की गईं केरल की दो ननों और एक आदिवासी युवक को सशर्त जमानत दे दी है। ये गिरफ्तारी 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन से की गई थी।
जिन्हें जमानत मिली है, वे हैं सिस्टर प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस (असीसी सिस्टर्स ऑफ मैरी इम्मैक्युलेट संस्था की सदस्य) और सुकमन मंडावी, जो एक आदिवासी युवक हैं।
प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी ने यह जमानत दी, जिसमें यह शर्त रखी गई कि सभी आरोपियों को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा और 50,000 रुपये का व्यक्तिगत मुचलका देना होगा, साथ ही दो लोगों को जमानती बनाना होगा।
इससे पहले दुर्ग की सत्र अदालत ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की मानव तस्करी की धारा के तहत अधिकार क्षेत्र के अभाव में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें बिलासपुर स्थित एनआईए अदालत का रुख करने को कहा था।
इस गिरफ्तारी को लेकर केरल में व्यापक विरोध-प्रदर्शन हुए थे और चर्च व राजनीतिक दलों (एलडीएफ और विपक्षी दल) ने इसे लेकर तीखी आलोचना की थी।
सीपीआई(एम) नेता वृंदा करात ने इसे “आदिवासी समुदाय की बड़ी जीत” बताया और बजरंग दल व हिंदू वाहिनी पर “झूठी शिकायतें” दर्ज कराने को लेकर कार्रवाई की मांग की।
सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा, “यह संविधान की जीत है। यह पूरी तरह झूठा मामला था और हम एफआईआर को रद्द कराने की लड़ाई जारी रखेंगे।”
ननों के वकील अमृतो दास ने अदालत में दलील दी कि यह मामला पूरी तरह “बेबुनियाद” है। उन्होंने कहा कि जिन लड़कियों को लेकर आरोप लगाए गए हैं, उनके माता-पिता ने खुद यह बयान दिया है कि उनकी बेटियां कई वर्षों से ईसाई धर्म अपना चुकी हैं और वे वयस्क हैं। वे अपनी मर्जी से आगरा काम के लिए जा रही थीं, इसलिए न तो जबरन धर्मांतरण का मामला बनता है और न ही मानव तस्करी का।
इस प्रकरण को लेकर भाजपा केरल और भाजपा छत्तीसगढ़ इकाइयों के बीच भी टकराव सामने आया था। केरल भाजपा अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने इसे “गलतफहमी” बताते हुए कहा था कि छत्तीसगढ़ सरकार जमानत का विरोध नहीं करेगी।
