बिलासपुर/रायपुर। छत्तीसगढ़ वन विभाग में लंबे समय से प्रमोशन से वंचित चल रहे सीताराम और मंगऊ बघेल को अब अंततः न्याय मिला है। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर ने एक अहम फैसले में राज्य सरकार को निर्देशित किया है कि दोनों अधिकारीगण को विलंबित प्रमोशन (प्रत्यावर्ती प्रभाव से) प्रदान किया जाए और उनके पेंशन एवं वेतन लाभों का पुनर्निर्धारण कर भुगतान सुनिश्चित किया जाए।
📜 मामला क्या है?
सीताराम और मंगऊ बघेल ने वन विभाग में सेवा की शुरुआत 1970 और 1980 के दशक में की थी। वर्ष 2008-09 में उन्हें फॉरेस्टर और वर्ष 2014 में डिप्टी रेंजर पद पर पदोन्नति दी गई थी। लेकिन, दोनों अधिकारी वन परिक्षेत्र अधिकारी (Range Officer) के पद के लिए पूरी तरह से पात्र होने के बावजूद विभागीय पदोन्नति समिति ने उनके नामों पर कार्रवाई नहीं की।
यहां तक कि 02 जनवरी 2020 को हुई विभागीय बैठक में भी दोनों को प्रमोशन के लिए पात्र मान लिया गया था, फिर भी विभाग ने आदेश जारी नहीं किए। इससे आहत होकर दोनों अधिकारियों ने न्यायालय की शरण ली।
⚖️ उच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश
20 जून 2025 को न्यायालय ने आदेश जारी करते हुए कहा कि:
“राज्य शासन द्वारा 16 फरवरी 2015 को जारी अधिसूचना में यह स्पष्ट है कि विभागीय पदोन्नति समिति की अनुशंसा के 20 कार्य दिवसों के भीतर प्रमोशन आदेश जारी किया जाना चाहिए। लेकिन संबंधित अधिकारियों ने बिना किसी ठोस कारण के इस नियम की अवहेलना की।”
न्यायालय ने आदेशित किया कि:
- सीताराम एवं मंगऊ बघेल को प्रत्यावर्ती प्रभाव से प्रमोशन दिया जाए।
- उनके अनुसार सेवा लाभ, वेतन, पेंशन आदि का पुनर्निर्धारण कर उन्हें भुगतान किया जाए।
🚨 विभागीय लापरवाही पर सख्त टिप्पणी
न्यायालय ने यह भी कहा कि इस प्रकार की विलंबित कार्रवाई न केवल अनुचित है बल्कि यह कर्मचारियों के आर्थिक और मानसिक शोषण के बराबर है। इससे भविष्य में अन्य कर्मचारियों के लिए भी अनुचित उदाहरण प्रस्तुत होता है।
