नक्सल प्रभावित पुर्वर्ती गांव में बना 15 मीटर लंबा बैली ब्रिज, अब विकास की ओर बढ़ेगा बस्तर

रायपुर (छत्तीसगढ़): देश की आंतरिक सुरक्षा और विकास के मोर्चे पर एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने नक्सली कमांडर हिडमा के गांव पुर्वर्ती में 15 मीटर लंबा बैली ब्रिज बनाकर इतिहास रच दिया है। यह पुल सिर्फ एक भौतिक संरचना नहीं बल्कि नक्सलवाद के गढ़ माने जाने वाले सुकमा जिले के आदिवासी क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ने वाली जीवनरेखा बन गया है।

🛣️ अब तक कटा हुआ था संपर्क, अब हर मौसम में पहुंचेगा विकास

सुकमा के एसपी किरण चव्हाण ने बताया कि यह ब्रिज सिलगर-पुर्वर्ती रोड कॉरिडोर का अहम हिस्सा है, जो अब दर्जनों दुर्गम गांवों को जिला मुख्यालय से जोड़ता है। पहले यहां के ग्रामीण बरसात के मौसम में पानी से लबालब नालों और खतरनाक जंगल रास्तों से होकर बाजार या अस्पताल तक पहुंचते थे, जिससे जान का जोखिम बना रहता था।

उन्होंने कहा, “यह ब्रिज सिर्फ स्टील का नहीं है, बल्कि यह पुर्वर्ती, सिलगर, डुलेर, एल्मागुड़ा जैसे गांवों के लिए जीवन रेखा साबित होगा। अब ये गांव सीधे जगरगुंडा के रास्ते सुकमा और दंतेवाड़ा से जुड़ गए हैं।

🧱 केंद्र सरकार की ₹66 करोड़ की योजना का हिस्सा

यह ब्रिज ₹66 करोड़ की केंद्र सरकार की परियोजना के अंतर्गत बनाया गया है, जिसमें 64 किलोमीटर ऑल वेदर रोड का निर्माण शामिल है। इसका एक बड़ा हिस्सा — 51 किमी का एल्मागुड़ा से पुर्वर्ती तक का मार्ग — ₹53 करोड़ में तैयार किया जा रहा है। इससे टिम्मापुरम, गोल्लकोंडा, टेकुलगुड़ा, जब्बागट्टा और तुमलपाड़ जैसे गांव सीधे लाभान्वित होंगे।

🔒 पहले नहीं हो सकता था निर्माण, अब सुरक्षा बलों की मौजूदगी से संभव हुआ कार्य

बस्तर के अधिकारियों ने कहा कि यह क्षेत्र पिछले चार दशकों से माओवादियों के कड़े नियंत्रण में रहा है। हिडमा और देवा जैसे बड़े माओवादी नेताओं का दबदबा यहां रहा, जिसके चलते IED धमाके और एंबुश के खतरे के कारण BRO के लिए यहां निर्माण कार्य करना असंभव था।

लेकिन पिछले साल से क्षेत्र में सुरक्षा बलों द्वारा फॉरवर्ड बेस कैंप की स्थापना के बाद, माओवादी प्रभाव सिमट गया है। इसी कारण अब सुरक्षा बलों, व्यापारियों और आम नागरिकों का आना-जाना सुगम हो गया है।

🌉 बैली ब्रिज क्या है?

बैली ब्रिज एक प्री-फैब्रिकेटेड स्टील ट्रस ब्रिज होता है, जिसे नट और बोल्ट की मदद से तेजी से जोड़ा जा सकता है। यह भारी मशीनरी के बिना, कठिन और दूरदराज़ इलाकों में इंस्टॉल किया जा सकता है। इसकी डिजाइन 1940 के दशक में ब्रिटिश इंजीनियर डोनाल्ड बैली ने की थी। आज इसका उपयोग सेना, राहत-बचाव एजेंसियों और सीमावर्ती क्षेत्रों में किया जाता है। यह पुल भारी सैन्य और व्यावसायिक वाहनों का भार झेलने में सक्षम होता है।