भाषाई टकराव या पहचान की लड़ाई? महाराष्ट्र और बेंगलुरु में ‘स्थानीय भाषा बोलो’ विवाद गरमाया

नई दिल्ली, 24 जुलाई 2025/
भारत में विविधता उसकी सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है — संस्कृति, परंपरा, भोजन, पहनावा और भाषाएं। लेकिन हाल के दिनों में महाराष्ट्र और कर्नाटक में स्थानीय भाषाओं को लेकर बढ़ते टकराव ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है — क्या भारत की भाषाई विविधता अब विवाद का कारण बनती जा रही है?


📍 मामला क्या है?

हाल ही में मुंबई और पुणे जैसे मराठी-बहुल शहरों में कुछ स्थानीय संगठनों द्वारा यह मांग उठाई गई कि ‘महाराष्ट्र में मराठी बोलो’। कई जगहों पर गैर-मराठी भाषी लोगों, विशेष रूप से हिंदी और दक्षिण भारतीय भाषाएं बोलने वालों को टोकने की घटनाएं सामने आई हैं।
वहीं दूसरी ओर, बेंगलुरु (कर्नाटक) में भी कुछ लोगों ने ‘यहाँ कन्नड़ बोलो’ की मांग करते हुए हिंदी और अंग्रेजी में बात करने वालों को सार्वजनिक रूप से फटकारा है।


🔥 किसने शुरू किया?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा राजनीतिक और सांस्कृतिक अस्मिता से जुड़ा हुआ है।

  • महाराष्ट्र में मराठी मानुष की भावना को लेकर कुछ स्थानीय संगठन वर्षों से सक्रिय हैं।
  • कर्नाटक में कन्नड़ भाषा संरक्षण की मांग लंबे समय से होती रही है।

इन दोनों राज्यों में मूल निवासियों को यह डर सता रहा है कि बाहर से आए लोग उनकी भाषा, संस्कृति और रोजगार पर असर डाल रहे हैं।


🎙️ लोगों की प्रतिक्रियाएं:

  • राजू पाटिल, एक टैक्सी चालक (मुंबई): “अगर आप यहां रहते हैं तो आपको मराठी समझनी चाहिए। यह हमारी पहचान है।”
  • रीमा शर्मा, एक आईटी कर्मचारी (बेंगलुरु): “काम की भाषा अंग्रेजी है, लेकिन ऑफिस के बाहर भी हमसे कन्नड़ बोलने की जबरदस्ती हो रही है।”
  • सोशल मीडिया पर कई लोगों ने लिखा: “भारत संविधानिक रूप से बहुभाषी देश है, किसी भी भाषा को बोलना हमारा मौलिक अधिकार है।”

⚖️ क्या कहता है कानून?

भारतीय संविधान की अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को स्वतंत्र रूप से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
इसके अलावा, राज्य सरकारों को अपनी आधिकारिक भाषाएं निर्धारित करने का अधिकार है, लेकिन किसी भी भाषा को थोपना या दूसरों को भाषा के आधार पर प्रताड़ित करना अवैध और असंवैधानिक है।


🧠 विशेषज्ञों की राय:

  • डॉ. सुमंत जोशी (भाषा विशेषज्ञ): “भाषा को पहचान और सम्मान के रूप में देखा जाना चाहिए, लेकिन इसे नफरत और भेदभाव का हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए।”
  • डॉ. अपर्णा देसाई (समाजशास्त्री): “भारत में भाषाएं पुल का काम करती हैं, दीवार का नहीं। हमें सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना चाहिए।”

🔚 निष्कर्ष:

भारत की ताकत उसकी एकता में अनेकता है। स्थानीय भाषाओं का सम्मान ज़रूरी है, लेकिन अन्य भाषाओं को अपमानित करना उस मूल भावना के खिलाफ है, जिस पर भारत की नींव रखी गई है।
‘भाषा’ को अधिकार के रूप में देखें, अहंकार के रूप में नहीं।