पुलिस हिरासत में मौत मामला: हाईकोर्ट ने बदली सजा, आजीवन कारावास की जगह 10 साल का कठोर कारावास

बिलासपुर, 24 जुलाई 2025:
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने जांजगीर-चांपा ज़िले के बहुचर्चित पुलिस हिरासत में मौत मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आरोपी चार पुलिसकर्मियों की सजा में संशोधन करते हुए आजीवन कारावास को घटाकर 10 वर्ष का कठोर कारावास कर दिया है। हालांकि, लगाया गया जुर्माना यथावत रहेगा।


📌 क्या था मामला?

यह मामला 17 सितंबर 2016 का है, जब मुलमुला थाना क्षेत्र में पुलिस हिरासत में लिए गए युवक सतीश नोरगे की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच और ट्रायल के बाद संबंधित पुलिसकर्मियों को धारा 302/34 (इरादतन हत्या) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।


⚖️ हाईकोर्ट का फैसला

दोषियों ने सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की खंडपीठ ने माना कि यह इरादतन हत्या नहीं बल्कि गैरइरादतन हत्या (Culpable Homicide Not Amounting to Murder) का मामला है।

इसलिए कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304(भाग-2)/34 के अंतर्गत दोषियों को 10 वर्ष का कठोर कारावास देने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मृत्यु दुर्भाग्यपूर्ण थी, लेकिन इसे जानबूझकर अंजाम दी गई हत्या नहीं माना जा सकता।


🧑‍⚖️ मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन

यह मामला मानवाधिकार हनन का भी गंभीर उदाहरण रहा है। हिरासत में मौत की घटनाएं कानून व्यवस्था और पुलिस तंत्र पर सवाल खड़े करती हैं। हालांकि, कोर्ट ने इरादा नहीं बल्कि परिणाम को आधार बनाकर सजा में बदलाव किया।


📌 निष्कर्ष

यह फैसला न्यायिक विवेक और कानूनी प्रक्रियाओं की गहराई को दर्शाता है, जहां साक्ष्यों के आधार पर सजा को तर्कसंगत बनाया गया। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि कानून किसी के साथ पक्षपात नहीं करता, लेकिन न्याय की गहराई तक जाकर तटस्थ फैसला करता है।