उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा: विपक्षी महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने पर मचा राजनीतिक भूचाल

नई दिल्ली। उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार रात एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे गए संक्षिप्त पत्र में उन्होंने महज दो शब्द लिखे — “I resign”। यह इस्तीफा ऐसे समय आया जब उन्होंने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी सांसदों द्वारा लाया गया महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, जबकि इसी तरह का प्रस्ताव लोकसभा में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा पहले ही प्रस्तुत किया जा चुका था।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, धनखड़ ने न केवल विपक्षी प्रस्ताव को स्वीकार किया, बल्कि इस निर्णय की जानकारी भाजपा को नहीं दी, जिससे सरकार सकते में आ गई। यही कारण था कि हाई-लेवल बैठकों और रणनीतिक चर्चाओं के बाद उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया।


राघव चड्ढा प्रकरण ने और बढ़ाई नाराजगी

धनखड़ के इस्तीफे का कारण सिर्फ महाभियोग प्रस्ताव नहीं है। सूत्रों के अनुसार, आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा को लेकर भी सरकार की नाराजगी लंबे समय से थी। दिसंबर 2023 में राज्यसभा विशेषाधिकार समिति ने चड्ढा को दोषी पाया था, लेकिन धनखड़ ने उनका निलंबन समाप्त कर दिया। यह निर्णय भाजपा के उच्च नेतृत्व को बिल्कुल रास नहीं आया।


सरकारी बंगले का विवाद

चड्ढा को मिले सरकारी बंगले को लेकर भी विवाद बढ़ा। एक ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया कि वह बंगला खाली करें, लेकिन उन्होंने हाई कोर्ट से स्टे ले लिया। इस मामले में भी राज्यसभा सचिवालय को उनकी ओर से उचित समर्थन नहीं मिला, जो सरकार के लिए असहज स्थिति बनाता गया।


विपक्ष के प्रति रुख में आया बदलाव

धनखड़ को विपक्ष पर कठोर रवैया अपनाने के लिए जाना जाता था, लेकिन हाल ही में उनके व्यवहार में बदलाव देखा गया। उन्होंने विपक्षी नेताओं को संसद में अधिक बोलने का अवसर देना शुरू कर दिया। खासकर ऑपरेशन सिंदूर पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण को रोकने के बजाय उन्होंने उसे जारी रखने दिया, जिससे भाजपा नाराज हुई।


किसानों के मुद्दे पर सरकार से टकराव

कृषि पृष्ठभूमि से आने वाले धनखड़ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और उर्वरकों पर सीधे नकद सब्सिडी के मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछे। दिसंबर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से तीखे सवाल किए, जिससे सरकार को असहजता महसूस हुई।


न्यायपालिका पर टिप्पणी

हाल ही में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लेकर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने नकदी की जब्ती पर आपराधिक जांच की मांग की और अपने भाषण में कहा, “Beware the Ides of March”, जिससे न्यायपालिका और कार्यपालिका के रिश्ते और भी तनावपूर्ण हो गए।


निष्कर्ष

धनखड़ का इस्तीफा केवल एक संवैधानिक पद से हटना नहीं है, यह सरकार, संसद और न्यायपालिका के बीच खिंचती रेखाओं और राजनीतिक संतुलन के बदलते स्वरूप का प्रतीक भी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस संवैधानिक संकट से कैसे निपटती है और नया उपराष्ट्रपति कौन होता है।