रायपुर, 23 जुलाई 2025:
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत दर्ज एक गंभीर मामले में जमानत याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि जब आरोप prima facie (प्रथम दृष्टया) सही प्रतीत होते हैं, तो धारा 43D(5) के तहत न्यायालय जमानत नहीं दे सकता। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने कहा कि “लंबी अवधि की हिरासत या सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयां राष्ट्र विरोधी अपराधों की गंभीरता को कम नहीं कर सकतीं।“
मामले की पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ताओं ने राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(4) के तहत विशेष एनआईए अदालत द्वारा जमानत याचिका खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।
प्रकरण में आरोप है कि मतदान के बाद एक IED ब्लास्ट में सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया, जिससे एक ITBP जवान की मौत हो गई। जांच में विस्फोटक सामग्री और गवाहों के 164 CrPC के तहत दर्ज बयान, बरामद हुए। इन साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्तों के विरुद्ध IPC, शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक अधिनियम और UAPA की धाराओं के अंतर्गत आरोप तय किए गए।
अपीलकर्ताओं का पक्ष:
अभियुक्तों ने दावा किया कि वे निर्दोष ग्रामीण हैं, जिन्हें झूठा फंसाया गया है। उनके अनुसार:
- FIR में नाम नहीं है,
- कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं,
- बरामद चीजें आम औजार हैं,
- गिरफ्तारी में प्रक्रिया की अनियमितता है,
- और उनका परिवार अत्यधिक कठिनाई में है।
NIA का पक्ष:
एनआईए ने इस याचिका का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि:
- यह मामला गंभीर आतंकवादी घटना से जुड़ा है,
- अभियुक्त CPI (माओवादी) से संबद्ध Over Ground Workers हैं,
- उन्होंने लॉजिस्टिक सपोर्ट, डेटोनेटर, वायर जैसी सामग्री उपलब्ध कराई,
- संरक्षित गवाहों के बयान, डॉक्युमेंट्स और बरामदगी से अभियुक्तों की भूमिका स्पष्ट होती है।
एनआईए ने कहा कि UAPA की धारा 43D(5) के अनुसार जमानत नहीं दी जा सकती क्योंकि आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं।
अदालत का विश्लेषण:
अदालत ने कहा कि UAPA की धारा 43D(5) स्पष्ट करती है कि जब तक अदालत यह नहीं मान ले कि आरोप prima facie गलत हैं, तब तक जमानत नहीं दी जा सकती।
अदालत ने NIA बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली (2019) के सुप्रीम कोर्ट निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि इस स्तर पर अदालत को तथ्यों की गहराई में जाकर जांच नहीं करनी चाहिए, बल्कि सिर्फ यह देखना चाहिए कि क्या रिकॉर्ड पर सामग्री आरोपों का समर्थन करती है।
खंडपीठ ने कहा:
“अभियुक्तों की CPI (माओवादी) से कथित संलिप्तता, IED ब्लास्ट में मदद, और विस्फोटक सामग्री की आपूर्ति को गवाहों और दस्तावेजों के माध्यम से सिद्ध किया गया है।“
निष्कर्ष एवं आदेश:
- अदालत ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक कठिनाई या लंबी हिरासत को इस गंभीर मामले में प्राथमिकता नहीं दी जा सकती।
- विशेष अदालत द्वारा जमानत न देने का निर्णय उचित था।
- अपील खारिज कर दी गई।
- साथ ही निचली अदालत को निर्देश दिया गया कि मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी की जाए।
