दुर्ग, 22 जुलाई 2025/ – छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की एक साधारण महिला खेमीन निर्मलकर ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सीमित संसाधनों से भी बड़ा बदलाव संभव है। पहले मजदूरी से गुजर-बसर करने वाली खेमीन आज अपने स्टील सेट्रींग प्लेट निर्माण व्यवसाय के जरिए लाखों की आमदनी कर रही हैं और सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
🌱 बिहान योजना से मिली नई राह
खेमीन निर्मलकर, कल्याणी स्व-सहायता समूह, रिसामा की सदस्य और सचिव हैं। वे छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन – ‘बिहान’ की सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं। पहले वे और उनके पति मजदूरी और मिस्त्री का काम करते थे, जिससे मासिक आमदनी मुश्किल से 8000 रुपये होती थी।
लेकिन खेमीन ने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर बदलाव की ठान ली। उन्होंने 2.5 लाख रुपये का बैंक ऋण और 1 लाख रुपये की खुद की पूंजी लगाकर 2000 वर्गफुट सेट्रींग प्लेट निर्माण का कार्य शुरू किया।
💰 बढ़ती आमदनी, बढ़ता आत्मविश्वास
- गुणवत्ता और समय पर आपूर्ति ने खेमीन दीदी के काम को ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
- वर्तमान में उनके पास 3000 वर्गफुट सेट्रींग प्लेट हैं, जिनका उपयोग 100-150 प्रधानमंत्री आवास योजना और 100+ निजी निर्माण कार्यों में हो चुका है।
- हर 1000 वर्गफुट प्लेट से 12,000 रुपये शुद्ध लाभ, यानी 3000 वर्गफुट से प्रति माह 36,000 रुपये की आमदनी।
- सालाना लगभग 3.6 लाख रुपये की शुद्ध आय।
🌍 केवल खुद नहीं, औरों को भी दे रहीं उजाला
खेमीन दीदी अब न सिर्फ रिसामा गांव में, बल्कि चंदखुरी, उतई, घुघसीडीह, मचांदुर, अण्डा, चिरपोटी, और बालोद जिले के ओटेबंद, सुखरी, पांगरी जैसे गांवों तक अपनी सेवा दे रही हैं। उनके व्यवसाय का तेजी से विस्तार हो रहा है।
अब उनकी योजना है कि व्यवसाय को 3000 से बढ़ाकर 5000 वर्गफुट तक ले जाया जाए, ताकि अन्य महिलाओं को भी रोजगार दिया जा सके।
🌟 महिला सशक्तिकरण की सच्ची तस्वीर
खेमीन निर्मलकर का यह सफर न सिर्फ आर्थिक स्वावलंबन की मिसाल है, बल्कि महिला सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण भी है। ‘बिहान’ जैसी योजनाएं जब जमीनी स्तर पर पहुंचती हैं, तो वे केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि जिंदगियों में बदलाव लाती हैं।
🧭 निष्कर्ष
खेमीन दीदी की कहानी छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है। यह एक संकेत है कि अगर योजनाएं सही हाथों तक पहुंचें, तो वह गरीबी नहीं, आत्मनिर्भरता की कहानी लिखती हैं।
