क्या प्रधान सेवक जी की तनख्वाह से चल सकता है उनका खर्च? फकीरी की आड़ में ‘लाइफस्टाइल’ पर उठे सवाल

नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025:
प्रधानमंत्री को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज़ है — क्या 2.33 लाख रुपये की मासिक सरकारी तनख्वाह में वास्तव में देश के सबसे बड़े पद पर बैठे नेता का खर्च चल सकता है? वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार विष्णु नागर ने इस मुद्दे को चुटीले अंदाज में उठाया है, लेकिन इसके पीछे गंभीर सवाल भी छिपे हैं।

गूगल और अन्य सरकारी स्रोतों के मुताबिक, प्रधानमंत्री को मासिक वेतन और भत्तों सहित कुल 2.33 लाख रुपए मिलते हैं। यह आंकड़ा सुनने में ठीक लगता है, लेकिन जब इसे उनकी कथित जीवनशैली से जोड़कर देखा जाए — जैसे रोज़ाना 4–5 बार कपड़े बदलना, हजारों रुपए के मशरूम खाना, विदेशी मेहमानों की आवभगत करना, निजी स्वास्थ्य के लिए विशेष आहार आदि — तो यह तनख्वाह काफी “मामूली” नजर आती है।

💰 क्या खर्च और आय में है कोई मेल?

विष्णु नागर अपने व्यंग्य में सवाल उठाते हैं कि यदि प्रधानमंत्री रोज़ाना सिर्फ 100 ग्राम मशरूम खाते हैं जिसकी कीमत 30,000 रुपये प्रति किलो है, तो महीने भर में 90,000 रुपये तो केवल मशरूम पर ही खर्च हो जाते होंगे। इसके साथ ही यदि उनके हर दिन के चार परिधान हैं और एक की कीमत औसतन 50,000 रुपये है, तो महीने में 60 लाख रुपये सिर्फ कपड़ों पर खर्च होते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि इतना सारा खर्च किस जेब से किया जा रहा है?

🧾 ईमानदारी बनाम सुविधाएं

प्रधान सेवक स्वयं को ‘फकीर’, ‘झोला उठाकर चल देने वाला’, और ‘ईमानदार’ बताते रहे हैं। परंतु ऐसे में यह जानना भी ज़रूरी है कि इतनी ऊंची जीवनशैली और सीमित सरकारी वेतन के बीच जो फासला है, उसे कौन और कैसे भर रहा है?

क्या उनकी पार्टी इस खर्च को उठाती है, जो अब देश की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है? या फिर यह किसी कॉरपोरेट समर्थन का मामला है?

या फिर — जैसा कि लेखक कहते हैं — “प्रधान सेवक का एकमात्र व्यवसाय प्रधानमंत्रीगीरी” ही है और उससे ही उनकी सभी जरूरतें पूरी होती हैं?

👔 हजारों ड्रेस का क्या हुआ?

एक और दिलचस्प सवाल यह भी उठा है कि ग्यारह सालों में जमा हुई हजारों पोशाकों का आखिर हुआ क्या? क्या वे प्रधानमंत्री निवास में संजो कर रखी गई हैं या उन्हें चुपचाप बेच दिया गया है? क्या सरकार इसकी कोई जानकारी साझा करेगी?


📣 यह सिर्फ व्यंग्य नहीं, पारदर्शिता का सवाल

प्रधानमंत्री जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति की आय और खर्च को लेकर सवाल उठाना, देश के लोकतंत्र और पारदर्शिता की दृष्टि से पूरी तरह वैध और आवश्यक है। अगर जवाब साफ़-साफ़ नहीं दिए जाते, तो जनमानस में अविश्वास पनप सकता है।

प्रधान सेवक जी को चाहिए कि अपने “ईमानदार” चरित्र को लेकर उठे सवालों का स्पष्ट उत्तर दें, ताकि उनकी छवि पर कोई संदेह की छाया न पड़े।