नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025:
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया सोमवार दोपहर से शुरू हो गई। यह भारत के इतिहास में पहली बार है जब किसी हाई कोर्ट के कार्यरत जज के खिलाफ संसद में महाभियोग की कार्यवाही शुरू हुई है।
यह कार्रवाई उस विवाद के बाद शुरू हुई जिसमें दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर जली हुई ₹500 की गड्डियों के ढेर पाए गए थे। इस मुद्दे ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
सूत्रों के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपे गए महाभियोग ज्ञापन पर सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस, वामदल, टीडीपी, जेडीयू और जेडीएस समेत विभिन्न दलों के 145 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। हस्ताक्षर करने वालों में भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, कांग्रेस के राहुल गांधी और एनसीपी (शरद पवार गुट) की सुप्रिया सुले भी शामिल हैं।
🔍 क्या है महाभियोग?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया दी गई है। हालांकि “महाभियोग” शब्द संविधान में नहीं है, लेकिन इसे 1968 के न्यायाधीश जांच अधिनियम (Judges Inquiry Act, 1968) के अंतर्गत निष्पादित किया जाता है।
राज्यसभा में कम से कम 50 और लोकसभा में 100 सांसदों के समर्थन से प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसके बाद संसद के अध्यक्ष या सभापति इसे आगे की जांच के लिए स्वीकार कर सकते हैं।
🔥 जस्टिस वर्मा केस की पृष्ठभूमि
15 मार्च को उनके दिल्ली स्थित बंगले में आग लगने के बाद दमकलकर्मियों को जली हुई नकदी की बड़ी मात्रा मिली। जस्टिस वर्मा ने इस नकदी से अपना कोई संबंध होने से इनकार किया और इसे “षड्यंत्र” करार दिया।
इस विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक इन-हाउस पैनल बनाया, जिसने 64 पन्नों की रिपोर्ट में महाभियोग की सिफारिश की। रिपोर्ट में कहा गया कि जिस हिस्से में नकदी मिली, वह जज और उनके परिवार के नियंत्रण में था।
⚖️ जस्टिस वर्मा की आपत्तियाँ
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इन-हाउस समिति की वैधता और उसके अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई नहीं दी गई और उनके द्वारा उठाए गए सवालों को नजरअंदाज किया गया।
गौरतलब है कि स्वतंत्र भारत में अभी तक किसी भी जज को महाभियोग के जरिये हटाया नहीं गया है, हालांकि पांच मामलों में प्रक्रिया शुरू हुई थी। सबसे हालिया मामला 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ था।
