तीन राज्यों की हालिया घटनाओं के पीछे आरएसएस का घोषित एजेंडा, ‘हिन्दी, हिन्दू, हिंदुस्तान’ की विचारधारा फिर से सवालों के घेरे में

नई दिल्ली, 19 जुलाई 2025:
हाल ही में महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना में घटी राजनीतिक और प्रशासनिक घटनाएं एक-दूसरे से भले ही अलग दिखाई देती हों, लेकिन विश्लेषकों के अनुसार इन सबके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का घोषित “हिन्दी, हिन्दू, हिंदुस्तान” वाला एजेंडा ही काम कर रहा है।

ये घटनाएं हैं —

  1. महाराष्ट्र में कक्षा 1 से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का आदेश,
  2. बिहार में चुनाव आयोग द्वारा 4 करोड़ मतदाताओं की व्यापक जांच,
  3. तेलंगाना में एन. रामचंद्र राव को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त करना

इन तीनों मामलों में भाजपा और संघ की विचारधारा के व्यापक प्रभाव और कार्यशैली को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।


महाराष्ट्र में हिंदी थोपने की कोशिश और मराठी अस्मिता की राजनीति

महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार ने जब हिंदी को पहली कक्षा से तीसरी भाषा के रूप में लागू किया, तब शिवसेना के ठाकरे बंधुओं ने इसका विरोध कर इसे मराठी अस्मिता का मुद्दा बना दिया। लेकिन भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा ठाकरे बंधुओं को “हिंदी भाषियों द्वारा पटक-पटक कर मारने” की धमकी ने भाजपा के रुख को उजागर कर दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद हिंदी बनाम मराठी नहीं बल्कि आरएसएस की एक राष्ट्र, एक भाषा की नीति को लागू करने की रणनीति है।


बिहार में मतदाता पहचान संकट और लोकतंत्र पर खतरा

बिहार में चुनाव आयोग ने 4 करोड़ मतदाताओं की सत्यापन के नाम पर व्यापक पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें 11 दस्तावेजों की मांग की गई है। इनमें से कई दस्तावेज आम जनता, खासकर दलित, आदिवासी, गरीब और भूमिहीन वर्ग के पास नहीं हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि यह कवायद संविधानिक मताधिकार से वंचित करने की एक गहरी साजिश है जो संघ की विचारधारा से मेल खाती है, जिसने शुरू से ही सार्वभौमिक मताधिकार का विरोध किया है।


तेलंगाना में एन. रामचंद्र राव की नियुक्ति और रोहित वेमूला प्रकरण

तेलंगाना भाजपा में हाल ही में हुए एन. रामचंद्र राव की प्रदेशाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति पर गहरा विवाद उठा है। उनकी भूमिका रोहित वेमूला आत्महत्या मामले में संदिग्ध रही है।
आरोप है कि रामचंद्र राव ने एबीवीपी के नेताओं के साथ मिलकर रोहित को विश्वविद्यालय से निष्कासित कराने के लिए दबाव बनाया था।
इस नियुक्ति को लेकर दलित संगठनों और भाजपा के अंदर भी असंतोष है, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने विरोध के बावजूद उन्हें पद पर बनाए रखा है, जिसे मनुवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है।