“क्या वाकई भारत चौथा सबसे समान देश है? सरकार के दावे के पीछे छुपा कड़वा सच!”

नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025
5 जुलाई 2025 को मोदी सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) द्वारा जारी एक बयान में विश्व बैंक के आँकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया गया कि भारत अब दुनिया का चौथा सबसे अधिक समानता वाला देश बन गया है। इस दावे को लेकर कॉर्पोरेट मीडिया में सरकार की नीतियों की खुलकर प्रशंसा की गई, लेकिन विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने इस दावे को भ्रामक, अपूर्ण और तथ्यहीन करार दिया है।

❗ गिनी सूचकांक का गलत उपयोग

विश्व बैंक द्वारा जारी गिनी सूचकांक में भारत का स्कोर 25.5 दर्शाया गया है, लेकिन यह “उपभोग व्यय” आधारित आँकड़ों पर आधारित है, न कि “आय आधारित”, जो असमानता का वास्तविक सूचक होता है। भारत जैसे देश में, जहाँ उच्च वर्ग की आय और बचत का बड़ा हिस्सा सर्वेक्षणों से बाहर रह जाता है, वहाँ उपभोग आधारित आँकड़े असमानता को कम दर्शाते हैं

📊 भारत में असली आर्थिक असमानता की तस्वीर

विश्व असमानता प्रयोगशाला के अनुसार:

  • शीर्ष 10% आबादी भारत की कुल आय का 57.7% प्राप्त करती है।
  • शीर्ष 1% आबादी लगभग 23% राष्ट्रीय आय पर कब्जा रखती है।
  • निचले 50% को केवल 15% आय मिलती है।

💰 संपत्ति में भी गहराता फासला

  • भारत में शीर्ष 10% के पास 65% संपत्ति केंद्रित है।
  • 0.001% अमीरों के पास प्रति व्यक्ति औसतन 2261 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जो सबसे गरीब 50% की तुलना में 1.3 लाख गुना अधिक है।

🌍 वैश्विक तुलना में भारत कहां है?

  • आय असमानता के मामले में भारत दक्षिण अफ्रीका के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
  • धन के संकेंद्रण में भारत ब्राज़ील, अमेरिका और चीन के बाद आता है।

🔍 सरकार का दावा क्यों है भ्रामक?

  • गिनी इंडेक्स की 2022 की सूची में केवल 61 देश शामिल थे, न कि पूरी दुनिया।
  • भारत का डेटा उपभोग सर्वेक्षण पर आधारित था जबकि कई अन्य देशों का आय आधारित था।
  • विश्व बैंक ने खुद स्पष्ट किया है कि ऐसे आँकड़े तुलनीय नहीं होते, फिर भी सरकार ने इन्हें तुलना के लिए इस्तेमाल किया।

📢 निष्कर्ष:

सरकार द्वारा किया गया यह दावा तथ्यों के साथ खिलवाड़ और जनता को गुमराह करने की कोशिश है। गिनी सूचकांक को गलत तरीके से प्रस्तुत कर भारत की वास्तविक आर्थिक असमानता को छिपाया गया है। यह केवल एक प्रचार आधारित राजनीतिक रणनीति है, न कि सच्चाई का प्रतिनिधित्व।