पुणे पोर्श हादसे में मुख्य आरोपी को किशोर मानने पर परिजनों का फूटा गुस्सा, उठे न्याय प्रणाली पर सवाल

पुणे, 15 जुलाई 2025 — पुणे के चर्चित पोर्श हादसे में किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) द्वारा मुख्य आरोपी को “किशोर के रूप में ही मुकदमा चलाने” के निर्णय ने देशभर में एक बार फिर न्याय व्यवस्था, धनबल और रसूख के दुरुपयोग पर बहस छेड़ दी है। हादसे में जान गंवाने वाले दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के परिजनों ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।


🗣️ “यह पैसा और ताकत का खेल है” – मृतकों के पिता

अश्विनी कोश्टा के पिता सुरेश कोश्टा ने कहा:

“जिस बोर्ड के सदस्यों को सरकार ने हटाया, उनके स्थान पर एक साल तक कोई नियुक्ति नहीं हुई, लेकिन एक महीने में ही नए सदस्य आ गए और फैसला भी हो गया। सवाल तो उठेंगे ही।”

उन्होंने कहा कि शराब पीकर गाड़ी चलाने वाला कोई किशोर नहीं हो सकता और ऐसे मामले में आरोपी को वयस्क के रूप में ट्रायल मिलना चाहिए था

वहीं, आनिश अवधिया के पिता ओम प्रकाश अवधिया ने कहा:

“शुरू से ही हमें पता था कि हमें क्या मिलने वाला है। ये अमीर लोग हैं… जो अपने बच्चों को तीन करोड़ की कार चलाने देते हैं। मीडिया ने भी दिखाया कि ब्लड सैंपल बदलने की कोशिश हुई थी, लेकिन डॉक्टरों ने ऐसा नहीं होने दिया।”


🚘 क्या था मामला?

  • 19 मई 2024 को, 17 वर्षीय आरोपी ने अपनी परीक्षा के बाद दोस्तों के साथ शराब पीकर 48,000 रुपये की बिल की पार्टी की।
  • उसी रात तेज रफ्तार पोर्श कार चलाते हुए उसने दो IT प्रोफेशनल्स को कुचल दिया, जो मौके पर ही मारे गए।
  • आरोपी का पिता पुणे का एक प्रसिद्ध व्यवसायी है, जिस कारण पुलिस की निष्पक्षता पर भी सवाल उठे।

⚖️ किशोर न्याय बोर्ड के फैसले पर बढ़ता विवाद

इस मामले में जनता का गुस्सा पहले भी चरम पर था, जब बोर्ड ने आरोपी को सिर्फ 300 शब्दों का निबंध लिखने और ट्रैफिक जागरूकता सेशन में भाग लेने की शर्त पर बेल दी थी। बाद में उसे पुणे के निरीक्षण गृह में भेजा गया।

अब, आरोपी को वयस्क के बजाय किशोर के रूप में ट्रायल देने के निर्णय ने फिर से विवाद खड़ा कर दिया है।


🧑‍⚖️ बचाव पक्ष की दलील

बचाव पक्ष के वकील प्रशांत पाटिल ने कहा कि:

“हमने सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि किसी अपराध को ‘जघन्य’ तभी कहा जा सकता है जब उसमें कम से कम 7 साल की न्यूनतम सजा हो। इस केस में ऐसी कोई धारा नहीं लगी है।”

उन्होंने कहा कि प्रॉसिक्यूशन की याचिका सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के विरुद्ध है, इसलिए अस्वीकार्य है।