बिलासपुर, 11 जुलाई 2025 — छत्तीसगढ़ में सरकारें भले ही “विकास की गंगा बहाने” के दावे कर रही हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। बिलासपुर मुख्यालय से मात्र 3 किलोमीटर दूर स्थित नगर पालिका परिषद क्षेत्र का एक गांव आज भी सड़क, नाली, जल निकासी, और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इस गांव से चार बार के विधायक और छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष चुने गए हैं। इसके बावजूद गांव की हालत देखकर कहना गलत नहीं होगा कि ‘विकास’ शब्द यहां सिर्फ भाषणों और बैनरों तक सीमित है।
जनता सेवक या सत्ता का सुखभोगी?
गांव के लोगों का कहना है कि चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे और दावे किए जाते हैं। नेता खुद को जनता का सेवक कहते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक न कोई झांकने आता है और न कोई समस्या सुलझती है।
गांव में कीचड़ भरी गलियां, टूटी-फूटी सड़कें, गंदा पीने का पानी और जलभराव जैसी समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं।
क्या यही है ‘विकास का मॉडल’?
इस स्थिति को देखकर विकास शब्द पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिन क्षेत्रों को राजनीतिक रूप से ताकतवर नेता मिले, वहां बुनियादी सुविधाओं का यह हाल देख व्यवस्था पर जनता का विश्वास डगमगाने लगा है।
