छत्तीसगढ़ में मराठी भाषा को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग पर हाईकोर्ट सख्त, राज्य सरकार को 3 माह में निर्णय लेने का निर्देश

बिलासपुर, 9 जुलाई 2025छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि मराठी भाषी समुदाय को भाषाई अल्पसंख्यक दर्जा देने की याचिका पर 3 महीने के भीतर निर्णय लिया जाए। यह याचिका बिलासपुर निवासी डॉ. सचिन काले द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने अपने मामले की स्वयं पैरवी करते हुए संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देकर यह मांग की थी।

याचिका में यह प्रमुख बिंदु उठाए गए:

  • संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के अंतर्गत भाषाई एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के TMA पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य केस में यह स्पष्ट किया गया कि अल्पसंख्यक दर्जा राज्य स्तर पर तय किया जाना चाहिए।
  • कई राज्यों में भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के उदाहरण प्रस्तुत किए गए।
  • महाराष्ट्र में यहूदी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने का भी हवाला याचिका में दिया गया।

मुख्य बिंदु:
याचिकाकर्ता डॉ. सचिन काले ने 27 नवंबर 2024 को राज्य सरकार को एक अभ्यावेदन दिया था, जिस पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया। इस पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु शामिल थे, ने राज्य सरकार को तीन माह के भीतर अभ्यावेदन पर निर्णय लेने के निर्देश दिए।

न्यायालय ने कहा कि भाषाई अधिकार भारतीय संविधान में निहित हैं और राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस मांग पर युक्तिसंगत तरीके से विचार करे।

यह मामला अब भाषाई पहचान और अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़ी बड़ी बहस को जन्म दे रहा है, और यदि राज्य सरकार मराठी भाषी समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देती है, तो यह कई अन्य समुदायों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।