बिलासपुर : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में जीएसटी विभाग को निर्देश दिया है कि वह एक महिला करदाता अर्चना मिश्रा (व्यवसायिक नाम श्री एग्रो टेक) के फ्रीज किए गए बैंक खाते को तुरंत रिलीज करे। यह आदेश उस स्थिति में दिया गया जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता की वित्तीय तंगी और चिकित्सकीय आवश्यकताओं को गंभीरता से लिया।
मामले की पृष्ठभूमि
अर्चना मिश्रा के खिलाफ सहायक आयुक्त, सेंट्रल जीएसटी एवं एक्साइज द्वारा 31 अगस्त 2023 को तथा सुपरिंटेंडेंट, सेंट्रल जीएसटी एवं एक्साइज द्वारा 25 दिसंबर 2023 को दो एकतरफा (ex-parte) आदेश पारित किए गए। इन आदेशों के आधार पर विभाग ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए कर, ब्याज और जुर्माने की मांग उठाई। इसके बाद विभाग ने 8 जनवरी 2025 को केनरा बैंक को पत्र भेजकर ₹6,72,000 की राशि होल्ड कर खाते को फ्रीज करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से अधिकृत प्रतिनिधि ने कोर्ट को बताया कि यह आदेश बिना सुनवाई और नोटिस के पारित किए गए, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि अर्चना मिश्रा एक छोटी व्यवसायी हैं, और उनके व्यापार और स्वास्थ्य दोनों पर इन आदेशों का गंभीर दुष्प्रभाव पड़ा है। अकाउंट फ्रीज होने से न सिर्फ व्यापार बाधित हुआ है बल्कि आवश्यक चिकित्सकीय खर्च भी नहीं हो पा रहे हैं।
जीएसटी विभाग का पक्ष
विभाग की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को CGST अधिनियम के अंतर्गत वैकल्पिक अपीली remedy उपलब्ध है और जब तक वह उपाय नहीं अपनाया जाता, तब तक रिट याचिका दाखिल करना समयपूर्व और अवैध है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि कर विवादों में जब अधिनियम स्वयं अपील की व्यवस्था करता है, तो रिट कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
कोर्ट का निर्णय
जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की एकलपीठ ने यह माना कि याचिकाकर्ता ने अपील दाखिल करने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन तत्काल वित्तीय संकट और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए अंतरिम राहत देना आवश्यक है।
कोर्ट ने निर्देश दिए:
- याचिकाकर्ता को 30 दिनों के भीतर वैधानिक अपील दायर करने की छूट दी गई।
- अपीलीय प्राधिकरण को कहा गया कि वह देरी को लेकर आपत्ति न उठाए और मामले की सुनवाई गुण-दोष के आधार पर करे।
- जब तक अपील का निर्णय नहीं हो जाता, फ्रीज किया गया बैंक अकाउंट रिलीज किया जाए ताकि याचिकाकर्ता को तत्काल राहत मिल सके।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश जीएसटी विभाग के आदेशों को रद्द करने के समान नहीं है, बल्कि केवल मानवीय आधार पर दी गई तत्काल राहत है।
निष्कर्ष:
यह मामला दर्शाता है कि न्यायपालिका किस प्रकार करदाताओं की सामाजिक व व्यक्तिगत परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थात्मक लचीलापन और मानवीय दृष्टिकोण अपनाती है। कोर्ट का यह फैसला न केवल एक जरूरतमंद नागरिक को राहत देने वाला है, बल्कि जीएसटी विवादों में संतुलन की मिसाल भी है।
