रायपुर, 08 जुलाई 2025: छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को रासायनिक उर्वरकों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। खरीफ सीजन 2025 के दौरान पारंपरिक डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) की संभावित कमी को ध्यान में रखते हुए राज्य शासन ने इसके व्यवहारिक विकल्प के रूप में नैनो डीएपी उर्वरक की विशेष व्यवस्था की है। इसके साथ ही एनपीके और एसएसपी जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का भी भंडारण लक्ष्य से अधिक मात्रा में किया गया है।
क्या है नैनो डीएपी?
नैनो डीएपी एक आधुनिक, तरल और किफायती उर्वरक है, जो पारंपरिक डीएपी के मुकाबले तेजी से अवशोषित होने वाला, ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर और पर्यावरण के अनुकूल है। यह स्प्रे के माध्यम से सीधे पौधों पर छिड़का जाता है, जिससे फसल को तुरंत पोषण मिलता है और उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
लागत में लाभ, गुणवत्ता में सुधार
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिकों ने बताया कि एक एकड़ धान की फसल के लिए जहां सामान्यतः 1350 रुपए की एक बोरी डीएपी लगती है, वहीं नैनो डीएपी और ठोस डीएपी के मिश्रण से यह लागत घटकर 1275 रुपए रह जाती है। वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया कि नैनो डीएपी से खेती की लागत कम होती है और उत्पादन में गुणवत्ता और पोषण का स्तर बेहतर होता है।
उपयोग की विधि क्या है?
- बीज उपचार: एक एकड़ के लिए 30 किलो धान बीज को 150 मिली नैनो डीएपी को 3 लीटर पानी में घोलकर उपचारित करें, फिर आधे घंटे छांव में सुखाकर बुआई करें।
- रोपाई के समय: 50 लीटर पानी में 250 मिली नैनो डीएपी घोलकर थरहा की जड़ों को आधा घंटा डुबोकर रखें, फिर रोपाई करें।
- बोआई के 30 दिन बाद: 125 लीटर पानी में 250 मिली नैनो डीएपी घोलकर फसल पर छिड़काव करें।
इस विधि से न सिर्फ फसल को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं, बल्कि मृदा की उर्वरता भी बनी रहती है।
राज्य सरकार की पहल
मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देशानुसार कृषि विभाग ने राज्य भर में नैनो डीएपी, एनपीके और एसएसपी जैसे वैकल्पिक उर्वरकों का पर्याप्त भंडारण समितियों में सुनिश्चित किया है। साथ ही, किसानों को प्रशिक्षण एवं जागरूकता शिविरों के माध्यम से इन उर्वरकों के उपयोग के बारे में जानकारी दी जा रही है।
कृषि विभाग की अपील
कृषि विभाग ने सभी किसानों से अपील की है कि वे डीएपी की कमी की स्थिति में नैनो डीएपी और अन्य वैकल्पिक उर्वरकों का उपयोग करें। यह न सिर्फ सस्ता है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है और फसलों को भरपूर पोषण भी देता है।
