जयपुर, 4 जुलाई 2025 – राजस्थान के बारां जिले में स्थित छबड़ा मोतीपुरा थर्मल पावर प्लांट को छत्तीसगढ़ की खदानों से कोयले की आपूर्ति पर अब गंभीर संकट खड़ा हो गया है। कोयला मंत्रालय ने राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को पूर्व आवंटित खदानों से कोयला आपूर्ति जारी रखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
यह मामला राजस्थान उत्पादन निगम और एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन) के बीच बने 50:50 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले जॉइंट वेंचर से जुड़ा है। जॉइंट वेंचर में प्रशासनिक अधिकार एनटीपीसी के पास होने से प्लांट के प्रबंधन और नियंत्रण में बदलाव आ गया है। यही कारण है कि कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नवगठित कंपनी को खदानों से कोयला नहीं दिया जा सकता, क्योंकि आवंटन केवल उत्पादन निगम के लिए स्वीकृत था।
अस्थायी राहत, लेकिन भविष्य अनिश्चित
फिलहाल छत्तीसगढ़ की परसा कांटा और ईस्ट बेसिन खदानों से 70 लाख टन और कोल इंडिया से 23 लाख टन कोयला मिल रहा है। जब तक नई कंपनी का गठन नहीं हो जाता, तब तक कोयला आपूर्ति चालू रहेगी। लेकिन जैसे ही कंपनी गठित होती है, खदानों से कोयला मिलना बंद हो जाएगा।
यदि नई कंपनी को दूसरी जगह से कोयला खरीदना पड़ा तो लागत छत्तीसगढ़ की तुलना में कहीं अधिक होगी, जिससे बिजली उत्पादन की लागत और दरें दोनों प्रभावित हो सकती हैं।
नई यूनिट से 50 लाख टन कोयले की अतिरिक्त आवश्यकता
वर्तमान में छबड़ा पावर प्लांट की उत्पादन क्षमता 2320 मेगावाट है। प्रस्तावित दो नई यूनिटों के निर्माण के बाद — जिनमें हर एक की क्षमता 660 से 800 मेगावाट तक हो सकती है — प्लांट को 50 लाख टन अतिरिक्त कोयले की वार्षिक आवश्यकता होगी।
जल्द होगी कोयला मंत्रालय से वार्ता
इस संकट के चलते राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम और ऊर्जा विभाग में हलचल तेज हो गई है। जल्दी ही दिल्ली में कोयला मंत्रालय के अधिकारियों के साथ समस्या के समाधान को लेकर बैठक आयोजित की जाएगी। अधिकारियों की कोशिश रहेगी कि कोयला आपूर्ति में उत्पन्न अड़चनों को दूर किया जा सके।
क्या हैं मुख्य चुनौतियां?
- नई कंपनी को खदानों से कोयला आवंटन की अनुमति नहीं
- कोयला आपूर्ति रुकने की स्थिति में उत्पादन प्रभावित होने का खतरा
- दूसरे स्रोत से कोयला मिलने पर लागत में भारी वृद्धि
- प्रस्तावित यूनिटों के लिए अतिरिक्त 50 लाख टन कोयले की जरूरत
निष्कर्ष:
छबड़ा मोतीपुरा प्लांट की कोयला आपूर्ति की यह समस्या न केवल राजस्थान की ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है, बल्कि भविष्य की बिजली परियोजनाओं की योजना को भी प्रभावित कर सकती है। उम्मीद की जा रही है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर जल्द कोई समाधान निकालेंगी, जिससे बिजली उत्पादन सतत और किफायती बना रहे।
