15 सालों से तिरपाल और झाड़ियों के नीचे चल रहा स्कूल, सुकमा के बच्चों का जज्बा बना मिसाल

सुकमा (छत्तीसगढ़), 4 जुलाई 2025 – एक ओर देश में डिजिटल इंडिया और स्मार्ट क्लासरूम की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर सुकमा जिले के कामराजपाड़ गांव में बच्चे आज भी झाड़ियों की दीवारों और तिरपाल की छत के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। पिछले 15 वर्षों से यह स्कूल एक झोपड़ी में संचालित हो रहा है, जहां न पक्की इमारत है, न बेंच-कुर्सी, और न ही शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं।

यह गांव कोंटा ब्लॉक मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन सड़क और प्रशासनिक पहुंच की कमी ने इस गांव को विकास की मुख्यधारा से दूर रखा है। बारिश हो या कड़कती धूप, बच्चे रोज इसी अस्थायी स्कूल में आकर शिक्षा हासिल करने की कोशिश करते हैं।


सलवा जुडूम के बाद से झोपड़ी में चल रहा स्कूल

ग्रामवासी लक्ष्मण ने बताया कि यह झोपड़ी स्कूल सलवा जुडूम आंदोलन के दौरान अस्तित्व में आया। ग्रामीणों ने बार-बार स्थायी स्कूल भवन की मांग की, लेकिन लंबे समय तक कोई सुनवाई नहीं हुई। पिछले साल भवन की स्वीकृति तो मिली, लेकिन निर्माण अब तक अधूरा है।


ग्रामीणों ने खुद बनाया स्कूल, शिक्षक कर रहे सहयोग

जब शासन-प्रशासन से मदद नहीं मिली तो ग्रामीणों ने खुद स्कूल चलाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने झोपड़ी तैयार की, और शिक्षकों ने तिरपाल और जरूरी सामग्री की व्यवस्था की। शिक्षक बंशगोपाल बैगा ने बताया कि गर्मी और बरसात में बच्चों के लिए पढ़ाई करना बेहद मुश्किल हो जाता है, लेकिन ग्रामीणों के सहयोग से स्कूल नियमित रूप से संचालित हो रहा है। फिलहाल कक्षा पहली से पांचवीं तक के 7 बच्चे यहां पढ़ाई कर रहे हैं।


बीईओ बोले – निर्माणाधीन है स्कूल भवन

बीईओ पी. श्रीनिवास राव ने कहा कि कामराजपाड़ अतिसंवेदनशील क्षेत्र है, इसलिए वर्षों बाद स्कूल भवन की स्वीकृति मिली है। वर्तमान में भवन निर्माण कार्य जारी है और अगले 3-4 महीनों में इसे पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि गांव एनएच-30 से 7 किलोमीटर दूर है और दो साल पहले मिट्टी-मुरूम सड़क बनाई गई थी।


शिक्षा के दीप को जलाए रखने की मिसाल बना गांव

कामराजपाड़ की यह कहानी शिक्षा के प्रति ग्रामीणों के समर्पण की मिसाल है। सुविधाओं की कमी के बावजूद बच्चों की शिक्षा न रुके, इस सोच के साथ गांव के लोग हर कठिनाई का सामना कर रहे हैं। सरकार से उम्मीद है कि जल्द ही भवन निर्माण पूरा कर बच्चों को एक सुरक्षित और बेहतर शैक्षणिक माहौल मिल सके।